DRDO ने बनाई भारत की ‘तीसरी आंख’, दुश्मन के खुफिया जेट्स भी नहीं दे पकड़ पाएंगे!

नई दिल्ली : भारत ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक और बड़ी सफलता हासिल की है. ने एक नई रडार तकनीक विकसित की है, जिसका नाम है Multistatic Radar System. यह तकनीक स्टेल्थ (Stealth) यानी छुपकर उड़ने वाले लड़ाकू विमानों को भी पकड़ने में सक्षम है. अब भारत की नजरें पहले से और तेज हो गई हैं.
मल्टीस्टेटिक रडार क्या है? :- मल्टीस्टेटिक रडार एक उन्नत रडार सिस्टम है, जो पारंपरिक रडार से अलग काम करता है. सामान्य रडार में सिग्नल भेजने और पकड़ने का काम एक ही जगह से होता है. लेकिन Multistatic Radar में सिग्नल भेजने (Transmitter) और पकड़ने (Receiver) की जगहें अलग-अलग होती हैं. इससे यह तकनीक ज्यादा बड़े इलाके को कवर कर सकती है और दुश्मन के स्टेल्थ विमानों को भी पकड़ सकती है, जो आम रडार से छुप जाते हैं.
स्टेल्थ तकनीक क्या होती है और यह इतनी खतरनाक क्यों मानी जाती है? :- स्टेल्थ तकनीक का मतलब है, रडार से बच निकलने की क्षमता. ऐसे विमान खास डिजाइन और कोटिंग से बनाए जाते हैं ताकि रडार की नजरों से बच सकें. अमेरिका के F-22 Raptor और B-2 Bomber जैसे विमान इसी तकनीक से लैस हैं. ये विमान दुश्मन देश की सीमाओं में घुसकर बिना दिखे हमला कर सकते हैं. लेकिन अब DRDO की नई तकनीक इनकी यह ‘अदृश्य’ ताकत खत्म करने की ओर बढ़ रही है.
DRDO की मल्टीस्टेटिक रडार कैसे काम करती है? : – यह तकनीक एक ही सिग्नल को अलग-अलग दिशाओं से भेजती है. रिसीवर (Signal पकड़ने वाला हिस्सा) किसी दूसरी जगह होता है. अगर विमान एक रडार से बच भी निकले, तो दूसरा रडार उसे पकड़ लेता है. यह सिस्टम High-Resolution Signal Processing और Multiple Frequency Bands पर काम करता है, जिससे छोटी से छोटी गतिविधि भी पकड़ में आ जाती है.
इस तकनीक से भारत को क्या फायदा होगा? :- स्टेल्थ विमानों पर नजर रखना: अब भारत किसी भी स्टेल्थ तकनीक वाले दुश्मन विमान की पहचान कर सकता है. सीमा पर बेहतर सुरक्षा: पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से होने वाले खतरों पर नजर रखी जा सकेगी. स्वदेशी तकनीक: यह पूरी तरह भारत में बनी तकनीक है, जिससे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी बड़ी सफलता मिली है. भविष्य की जरूरत: आने वाले समय में युद्ध की रणनीतियां बदलेंगी, ऐसे में यह तकनीक भारत को तैयार रखेगी.