उत्तराखंड उच्च न्यायालय: UCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एकसाथ हुई सुनवाई

केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का दिया समय

नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता (UCC) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिकाओं में यूसीसी के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए गए हैं खासकर लिव-इन रिलेशनशिप और अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों से जुड़े मुद्दों पर। अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से समय समय मांगा गया। जिसके बाद कोर्ट ने केंद्र को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।

मामले में अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी। सोमवार को सुनवाई के दौरान भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी की ओर से कहा गया कि प्रदेश में यूसीसी कानून जनवरी से लागू हो गया है। इससे प्रभावित लोगों ने कई याचिकाएं कोर्ट में दायर की है लेकिन अभी तक कुछ ही पक्षकारों ने जवाब पेश किया है।

केंद्र सरकार का जवाब भी नही आया, इसलिए शीघ्र केंद्र सरकार से जवाब तलब कराया जाय। जबकि राज्य सरकार की ओर से जवाब प्रस्तुत कर दिया गया है। जो याचिकाएं दायर की गई है उनमें से खासकर मुस्लिम सुमदाय व लिव इन रिलेशन में रह रहे लोग शामिल हैं।

लिव इन रिलेशन में रह रहे लोगों का कहना है कि जो फार्म रजिस्ट्रेशन के लिए भरवाया जा रहा है उसमें पूर्व की जानकारी मांगी गई है। अगर वे पूर्व की जानकारी फार्म में अंकित करते है तो उन्हें जानमाल का खतरा भी हो सकता है। इसमें संसोधन किया जाए।

भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने यूसीसी के विभिन्न प्रविधानों को जनहित याचिका के रूप में चुनौती दी है। देहरादून के एलमसुद्दीन सिद्दीकी समेत अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि यूसीसी में अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों को अनदेखा किया गया है।

याचिकाओं में कहा गया कि जहां सामान्य शादी के लिए लड़के की उम्र 21 व लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है। जबकि लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है। उनसे होने वाले बच्चे कानूनी बच्चे माने जाएंगे। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है या उससे छुटकारा पा सकता है।

जबकि विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है और दशकों के बाद तलाक होता है, वह भी पूरा भरण पोषण देकर। राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान से प्राप्त हैं ,राज्य सरकार ने उसमें हस्तक्षेप करके उनके अधिकारों का हनन किया है।

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि भविष्य में इसके परिणाम गंभीर हो सकते है। सभी लोग शादी न करके लिव इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करेंगे। यही नहीं 2010 के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। नहीं करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार के जुर्माने तक का प्राविधान रखा गया है।

ऐसे में तो लिव इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है। बस कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है। एक अन्य याचिका में कहा है कि यूसीसी में इस्लामिक रीति रिवाजों व कुरान के प्रविधानों की अनदेखी की गई है।

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