उत्तराखण्ड : आइआइटी रुड़की के हाथ लगी बड़ी सफलता
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से की नए परमाणु नाभिक की खोज

रुड़की : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की ने एक बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिसके परिणामस्वरूप एक नए परमाणु नाभिक, 188एस्टेटिन (188एटी) की खोज हुई। यह खोज फिनलैंड के जैवस्काइला विश्वविद्यालय की एक्सेलेरेटर प्रयोगशाला में एक प्रयोग के माध्यम से प्राप्त की गई।
आइआइटी रुड़की और पुर्तगाल के यूनिवर्सिडेड डी लिस्बोआ में विकसित सिद्धांत ने इसका पता लगाने में सहायता की। सैद्धांतिक प्रयासों का नेतृत्व करने वाले आइआइटी रुड़की के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर पी अरुमुगम ने बताया कि इस नए परमाणु नाभिक 188एटी की खोज नाभिक के क्षय होने की दुर्लभ प्रक्रिया पर आधारित है। जिसमें एक प्रोटान उत्सर्जित होता है। 188 की द्रव्यमान संख्या के साथ यह आज तक ज्ञात सबसे भारी प्रोटान-उत्सर्जक समस्थानिक है।
दिलचस्प बात यह है कि वैज्ञानिकों ने भारी नाभिक में थॉमस-एहरमन शिफ्ट नामक एक दुर्लभ घटना के पहले सबूत की भी रिपोर्ट की है। ये परिणाम मौलिक भौतिकी और संबद्ध क्षेत्रों में उनके निहितार्थों के महत्व के कारण नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।
प्रोफेसर पी अरुमुगम ने बताया कि अब तक सभी 118 ज्ञात तत्वों में से लगभग 3400 समस्थानिकों की खोज की जा चुकी है। जो संभावित मापनीय समस्थानिकों का केवल आधा है। ज्यवस्किला में नई सुविधाओं और फिनलैंड, अमेरिका, भारत, यूके, पुर्तगाल, स्लोवाकिया और जर्मनी के शोधकर्ताओं के एक मजबूत समूह के साथ 188एटी जैसे नए को मापना वास्तव में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
उन्होंने कहा कि आइआइटी रुड़की का योगदान मुख्य रूप से पिछले 15 वर्षों में विकसित अत्याधुनिक सिद्धांत और सिमुलेशन के माध्यम से है। खुशी है कि मौलिक भौतिकी में इस तरह की दिलचस्प घटनाओं की खोज में उनके लगातार प्रयास ने अंततः 188एटी की खोज करने में सक्षम बनाया।
आइआइटी रुड़की के निदेशक प्रो. केके पंत ने इस खोज के विषय में कहा कि मौलिक विज्ञान में यह महत्वपूर्ण विकास है। क्योंकि यह इसके अनुप्रयोग के दायरे को नई प्रौद्योगिकियों और समकालीन रुचि की समस्याओं तक बढ़ाता है। अनुसंधान के इस पहलू को लगातार विकसित किया है। जिससे अप्रत्याशित अद्वितीय गुणों वाले नए आइसोटोप की खोज जैसे अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। इस तरह के अभूतपूर्व परिणाम मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग से संभव हैं। जिसे आइआइटी रुड़की बढ़ावा देने के लिए उत्सुक है।