उदासीन जनता, बेचैन बीजेपी….. बिखर रहा मोदी का परिवार?….

2014, 2017, 2019 और 2022 के चुनाव को देखने के बाद कह सकता हूं जनता में भयानक किस्म की उदासीनता है। इस उदासीनता ने दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की नींद गायब कर दी है।

बीजेपी वोटर के अंदर उदासीनता का सीधा कारण मुझे इमोनशनल कनेक्ट का खत्म होना लगता है। वो तमाम मुददे जिन पर बीजेपी वोटर जोश से भर जाया करता था, वो पार्श्व में जा चुके हैं। धारा 370 हट चुकी है, राम मंदिर बन चुका है, ट्रिपल तलाक खतम हो चुका है। अब क्या? बीजेपी वोटर किस बात पर सीना फुलाए, किसके लिए बाहर निकले?

कॉमन सिविल कोड और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की वो इमोशनल अपील नहीं जो उन मुद्दों की थी। बीजेपी नेतृत्व के लिए और बीजेपी समर्थकों के लिए डेड एंड वाली स्थिति आ चुकी है। ऐसा महसूस हूुआ।

मोदी जी का रोना-धोना, उनकी ड्रामेबाज़ी से लोग उकता चुके हैं। सिलिंडर, आवास, राशन ठीक है लेकिन कब तक इस पर वोट लीजिएगा? मुझे सैचुरेशन दिख रहा।

दूसरी बात कि बीजेपी/मोदी का कट्टर समर्थक भी अंदर से डगमगाया हुआ लगा। वह भी जानता है कि कालाधन, रोजगार, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि के मुद्दे पर मोदी जी ने सिर्फ और सिर्फ लंतरानी की है पिछले दस सालों में। जनता को जवाब उसे ही देना पड़ता है। चौक-चौराहे, गली-नुक्कड़ की बहस में उसे निरुत्तर होना पड़ रहा है।

तीसरी बात कि महंगाई की मार सिर्फ विपक्ष की जनता पर नहीं पड़ती। मोदी भक्त की जेब भी खाली हो रही है। कमाई बढ़ नहीं रही। केजरीवाल को भ्रष्ट बताकर जेल में डालने की खुशी में भक्त कब तक नाचेगा? लोगों को दिख रहा है कि अजीत पवार जैसे भ्रष्टाचारी आपकी गोद में बैठकर पाक साफ हो गए। यह जो दोगलापन है वह अब लोगों तक पहुंच चुका है। मोदी जी moral advanatge लेते थे, वो ख़त्म।

चौथी बात कि अब्दुल की पिटाई भी अब रोमांचित नहीं करती। कितनी बार वोट लोगे अब्दुल को खलनायक बनाकर? मरियल अब्दुल की सुताई से जो सैडिस्ट प्लेज़र मिलता था उसमें अब वो वाला मजा नहीं रहा। एक ही हीरो की, एक विलेन वाली फिल्म जनता कब तक देखेगी? इस वजह से भी उदासीनता है।

पांचवी बात। बीजेपी के लिहाज से अच्छी बात सिर्फ इतनी है कि यह उदासीनता सक्रिय प्रतिरोध में नहीं बदल पा रही है। इसके पीछे विपक्ष की कमजोरी और दूसरी बाते हैं।

डॉ राजेश दीक्षित (प्रधान सम्पादक)
जनता और कानून समाचार पत्र लखनऊ उत्तर प्रदेश

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