देश की सभी संपत्तियां राष्ट्र या समुदाय में निहित, केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में दलीलें

बचकाना है संपत्तियों के बंटवारे का विचार...

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के बीच यह बहस जारी है कि क्या सरकार निजी संपत्तियों को जब्त या पुनर्वितरित कर सकती है। संपत्ति बंटवारे को लेकर छिड़ी बहस के बीच सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समतावाद हासिल करने के लिए ये ‘देहाती और बचकानी’ तरीके हैं।

संविधान के अनुच्छेद 39(बी) में समुदाय के भौतिक संसाधनों के वितरण की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य आम लोगों की भलाई है। मेहता ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच से कहा कि हर नागरिक की संपत्ति का योग करके और उसे एक खास वर्ग में बराबर-बराबर बांटकर देश की संपत्ति की गणना करने का प्रस्ताव करना एक देहाती और बचकानी विधि होगी।

इस तरह के विचार आर्थिक विकास, शासन, सामाजिक कल्याण और राष्ट्र की समझ की कमी को दर्शाते हैं। मेहता ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की जमीन का एक टुकड़ा है और उसे एक बड़े क्षेत्र के निवासियों की आम भलाई के लिए सड़क बनाने की जरूरत है, तो निजी स्वामित्व वाली उस जमीन को समुदाय की व्यापक भलाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भौतिक संसाधन के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 39 (बी) आधारित कानून का उद्देश्य किसी विशेष समुदाय, नस्ल या जाति के लोगों की संपत्ति को छीनकर दूसरे वर्ग के नागरिकों में वितरित करना नहीं है।

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