मऊ के सपा विधायक सुधाकर सिंह भगोड़ा घोषित?
39 साल पुराने केस में 10 जुलाई को कोर्ट में होगी अहम सुनवाई

मऊ (up) : उत्तर प्रदेश के मऊ की एमपी-एमएलए कोर्ट ने घोसी विधानसभा से समाजवादी पार्टी के विधायक सुधाकर सिंह को भगोड़ा घोषित किया है. कोर्ट के निर्णय के बाद सपा विधायक सुधाकर सिंह ने अपना बयान जारी किया है. उन्होंने कहा कि वे भगोड़ा नहीं हैं और उनके खिलाफ चल रहे तीन मुकदमे अभी भी कोर्ट में हैं. उन्होंने बताया कि घोसी में उनका कोतवाली और सीओ कार्यालय उनके घर से केवल 500 मीटर की दूरी पर है, इसलिए भगोड़ा होने का आरोप निराधार है.
सुधाकर सिंह ने यह भी बताया कि वे हर तीसरे महीने कोर्ट में हाजिर रहते हैं और जिस कोर्ट ने उन्हें भगोड़ा घोषित किया है, उसी कोर्ट में उनके मामले चल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे जिलाधिकारी और पुलिस विभाग की बैठकों में भी जाते हैं और अपने पक्ष में बात करते हैं. उन्होंने कहा कि यह मामला उनके छात्र जीवन से जुड़ा हुआ है और कोर्ट की कार्रवाई के बाद वे अपने वकील के माध्यम से अपील करेंगे.
उन्होंने अधिकारियों और प्रशासन से अपील की है कि वे उनके मामले को न्यायिक प्रक्रिया के तहत देखें. यह मामला लंबे समय से न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन कोर्ट द्वारा भगोड़ा घोषित किए जाने के बाद सियासी और कानूनी विवाद बढ़ गया है. विधायक सुधाकर सिंह की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अब कानूनी कार्रवाई कर रही है, जबकि विधायक ने खुद को निर्दोष बताते हुए अपील की तैयारी शुरू कर दी है.
भगोड़ा घोषित होने के बाद भी लड़ा चुनाव
सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे कोर्ट ने भगोड़ा घोषित कर दिया है, वह कैसे चुनाव लड़कर विधायक बन सकता है और क्षेत्र में खुलेआम राजनीति कर सकता है? सुधाकर सिंह की सक्रियता ने कानून के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब जबकि 10 जुलाई को निगरानी याचिका पर सुनवाई होनी है, यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है? क्या सुधाकर सिंह को राहत मिलती है या उनके खिलाफ कोई सख्त कदम उठाया जाता है?
सुधाकर सिंह ने भी दी फैसले को चुनौती
विधायक सुधाकर सिंह ने इस आदेश को चुनौती देने के लिए 4 जून 2024 को जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दाखिल की। अब इस याचिका पर 10 जुलाई 2025 को सुनवाई निर्धारित की गई है, जिसे लेकर प्रशासन और सियासी गलियारों की नजरें अदालत पर टिकी हुई हैं। विधायक के अधिवक्ता वीरेंद्र बहादुर पाल ने कोर्ट में दलील दी कि सुधाकर सिंह को कोर्ट की कार्यवाही की जानकारी नहीं थी और उन्हें कोई समन या वारंट भी तामील नहीं किया गया था। उन्होंने इस आधार पर फरारी का आदेश निरस्त करने की मांग की है।