पीएम मोदी का भूटान दौरा और चीन के बढ़ती चुनौती!
रेलवे के 2 प्रस्तावित रूटों पर बनी सहमति

नई दिल्लीः चुनावों की घोषणा के बाद किसी भी प्रधानमंत्री के लिए विदेश यात्रा करना एक दुर्लभ बात है. लेकिन पीएम मोदी का भूटान दौरा एक अपवाद है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान की अपनी दो दिवसीय राजकीय के दौरान शुक्रवार को भूटान के नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से मुलाकात की. प्रधानमंत्री मोदी ‘पड़ोस प्रथम’ की नीति के तहत भूटान के साथ भारत के अनूठे संबंधों को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर भूटान गए थे।
भारत के बीच ट्रेन समझौता, ‘चिकन नेक’ वाली साजिश का अन्त
पीएम मोदी विस्तारवादी चीन का पक्का इलाज करने में लगे हुए हैं. वे सरहद पर लगातार देश की ढांचागत सुविधाओं को बढ़ाने में लगे हुए हैं, जिससे ड्रैगन को करारी शिकस्त दी जा सके।
चीन अभी तक अरुणाचल प्रदेश में पीएम मोदी के दौरे और तवांग में सेला टनल के उद्घाटन से दर्द से उभरा भी नहीं था कि भारत ने उसे एक और बड़ा दर्द दे दिया है. पीएम मोदी के भूटान दौरे के दौरान दोनों देशों में कनेक्टिविटी बढ़ाने का बड़ा समझौता हुआ है।
इसके तहत भारत, अपने पड़ोसी देश भूटान के साथ ट्रेन सर्विस शुरू करेगा. समझौते में भारत और भूटान के बीच 2 ट्रेन रूट प्रस्तावित किए गए हैं. जिनका निर्माण होने से दोनों देशों में आना- जाना और आसान हो जाएगा, साथ ही इससे दोनों देशों के रिश्तों में भी ज्यादा गर्मजोशी आएगी।
थिम्पू ने सात साल के अंतराल के बाद 2023 में बीजिंग के साथ 25वें दौर की सीमा वार्ता आयोजित की और यह दावा करके कई लोगों को चैंका दिया कि भूटान सीमा मुद्दे को हल करने के करीब है.
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि ये कोशिश भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ न जाए, भूटान ने भारत को चीन के साथ अपनी सीमा वार्ता के बारे में उचित रूप से जानकारी दी है।
पिछले साल भूटान किंग की भारत यात्रा
पिछले साल भूटान के राजा ने भारत की यात्रा की थी. इसे कुछ लोगों ने भूटान की तरफ से चिंतित भारत को आश्वस्त करने के तरीके के रूप में देखा था. बता दें यह भूटान किंग की यह यात्रा उनकी पिछली यात्रा के 6 महीने बाद और चीन-भूटान सीमा वार्ता के बारे में खबरों के बीच हुई थी.
रेलवे के 2 प्रस्तावित रूटों पर बनी सहमति
भारतीय विदेश मंत्रालय ने पीएम मोदी के भूटान दौरे में हुए समझौतों की जानकारी दी. मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि दोनों देशों के शीर्ष नेता भारत और भूटान के बीच रेल संपर्क शुरू करने के लिए सहमति जता चुके हैं. इस संबंध में एक एमओयू भी साइन हो चुका है।
इस एमओयू में भारत और भूटान के बीच दो प्रस्तावित रेल संपर्कों का प्रावधान किया गया है. इनमें से एक रूट कोकराझार-गेलेफू रेल संपर्क और दूसरा बनारहाट-समत्से रेल संपर्क होगा. इन दोनों रूटों पर रेलवे नेटवर्क बनाने का काम भारत करेगा, जबकि भूटान अपने हिस्से में इसके लिए जमीन उपलब्ध करवाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक संसदीय चुनावों की घोषणा के बाद किसी भी प्रधानमंत्री के लिए विदेश यात्रा करना एक दुर्लभ बात है. लेकिन पीएम मोदी का यह दौरा एक अपवाद है. पड़ोसी के नाते भूटान भारत के फोकस में है और दोनों देशों के बीच दोस्ती, आपसी विश्वास और सद्भावना का मजबूत बंधन है.
भूटान शायद इस क्षेत्र के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारतीय हितों के प्रति अधिक सचेत रहा है. वह चीन के दिए कई ऑफरों के बाद भी बीआरआई में शामिल नहीं होने वाला एकमात्र भारतीय पड़ोसी है।
अपनी विकास जरूरतों के लिए भूटान की भारत पर निर्भरता में भूगोल एक महत्वपूर्ण कारक रहा है और थिम्पू अपने सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भारत की मदद को खास मानता है.
भूटान में नई सरकार
भूटान में अब एक नई सरकार है. पीएम मोदी की यह यात्रा भारत के लिए भूटान की जरूरतों से प्रेरित मजबूत साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का एक अवसर है।
ऐसे समय में जब चीन संबंधों पर हावी होना चाहता है, तो इस तरह उच्च-स्तरीय यात्राएं और अहम हो जाती हैं. इनसे इस आशंका को दूर करने में भी मदद मिलती है कि भूटान भारत से दूर जा सकता है.
चीन-भूटान रिश्ते
चीन ने लंबे समय से भूटान को देश में एक राजनयिक मिशन के लिए आमंत्रित किया है. हालांकि थिम्पू भारतीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए इसे टालता रहा है. उसने चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है.
हालांकि, अब बातचीत अंतिम चरण में है, भूटान अपने क्षेत्र से गुजरने वाली किसी भी भारतीय मिलिट्री-संबंधी पहल को लेकर संशय में है, जैसे कि अरुणाचल के तवांग से भूटान तक एक सड़क बनाने का प्रस्ताव जो गुवाहाटी तक जाएगी.
भूटान चीन के साथ अपनी सीमा निर्धारित होने तक इंतजार करना चाहता है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर बीजिंग उत्तर में विवादित क्षेत्रों पर अपनी स्थिति सख्त कर देगा.
वहीं भारत यह नहीं चाहेगा कि वह एक संप्रभु देश द्वारा अपने पड़ोसी के साथ विवाद को सुलझाने की कोशिश को ब्लॉक करते हुए दिखे. हालांकि नई दिल्ली निश्चित रूप से इस बात को लेकर सावधान रहेगी कि आगे क्या हो सकता है? चीन पहले ही कह चुका है कि वह राजनयिक संबंधों की स्थापना के साथ-साथ सीमांकन को बढ़ाना चाहते हैं और आर्थिक सहयोग को विस्तार देना चाहता है.