भारत-पाक संघर्ष के दौरान चीन का ‘डिसइन्फो’ अभियान

नई दिल्ली। फ्रांसीसी खुफिया और रक्षा अधिकारियों के अनुसार चीन ने अपने विदेश स्थित राजदूतावासों को निर्देश दिया है कि वे राफेल लड़ाकू विमानों की साख पर सवाल उठाएं, खासकर मई में भारत‑पाक के बीच हुए संघर्ष के बाद। इसका मकसद फ्रांस के महत्वाकांक्षी विमान की बिक्री को प्रभावित करना बताया जा रहा है।
पाकिस्तान ने क्या दावा किया था?
पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने पांच भारतीय विमानों को गिराया, जिसमें तीन राफेल शामिल थे। पर फ्रांस ने इस बयान को खारिज करते हुए केवल एक राफेल, एक मिराज‑2000 और एक सुखोई की हानि स्वीकार की थी।
चीन की ‘डिसइन्फो’ रणनीति
फ्रांसीसी खुफिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने विदेशों में रक्षा अधिकारियों के साथ मीटिंग में राफेल की “कमज़ोर प्रदर्शन क्षमता” का प्रचार किया।
चीन यह सुझाव भी दे रहा है कि इंडोनेशिया जैसे मौजूदा ग्राहक अल्टरनेटिव विमानों को चुनें और नए ग्राहक चीनी विमानों की ओर आकर्षित हों।
ऑनलाइन भी अभियान तेज
सोशल मीडिया पर फैलाए गए कई फर्जी पोस्ट और तस्वीरें, जिनमें राफेल का मलबा दिखाया गया।
वीडियो गेम क्लिप और एआई द्वारा बनाई गई कंटेंट के जरिए दावा फैलाया गया कि राफेल चीन‑निर्मित विमानों से कमजोर है।
मई में भारत-पाक के बीच हुए संघर्ष के दौरान एक हजार से अधिक नए सोशल मीडिया अकाउंट बनाए गए, जिन्होंने ‘चीनी तकनीक सर्वोत्तम’ का संदेश भेजा।
फ्रांस की प्रतिक्रिया
फ्रांसीसी रक्षा मंत्रालय ने इसे राफेल और फ्रांस की प्रतिष्ठा पर एक विशाल डिसइन्फो अभियान करार दिया।
फ्रांस का कहना है कि यह हमला सिर्फ विमान पर नहीं, बल्कि उसकी रणनीतिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता पर भी निशान है।
चीन की ओर से प्रतिक्रिया में इसका खंडन किया गया और कहा गया कि यह बिना आधार की अफवाह है और चीन एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक है।
वैश्विक प्रभाव और संभावनाएं
राफेल की दुनिया भर में आठ देशों (इंडोनेशिया, ईजिप्ट, कतर, यूनाइटेड अरब अमीरात, ग्रीस, क्रोएशिया, सर्बिया) में बिक्री हो चुकी है। इंडोनेशिया ने 42 खरीदे हैं, इसके साथ ही और भी खरीदने पर विचार कर रहा है।
रक्षा विशेषज्ञ जस्टिन ब्रोंक (आर्मी/वायु सेना विश्लेषक) का कहना है कि चीन इस अभियान से फ्रांस के Indo‑Pacific क्षेत्र में बढ़ रहे प्रभाव को कम करना चाहता है।