एशिया में NATO जैसी ताकत! AUKUS को एशियाई नाटो के स्वरूप में देखा जा रहा
अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया के सैन्य गठबंधन AUKUS में हो सकती नए सदस्य की एंट्री

USA/यूनाइटेड किंगडम: आकुस की ओर से जारी एक साझा बयान में कहा गया था कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए संगठन अपना विस्तार करने पर विचार कर रहा है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता सबरीना सिंह ने कहा, “जापान की शक्तियों और तीनों सदस्यों (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) के साथ रक्षा क्षेत्र में जारी उसके सहयोग को देखते हुए हम जापान को आकुस के दूसरे स्तंभ के रूप में देख रहे हैं. इससे सैन्य तकनीकों का आदान प्रदान हो सकेगा.”
इस बयान के कुछ ही घंटे बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने जापान की एक सहयोगी के रूप में तारीफ की लेकिन साथ ही कहा कि आकुस में जापान को शामिल करने की फिलहाल कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा, “जो (अमेरिका में) प्रस्तावित है, वह परियोजना के आधार पर आकुस का दूसरा स्तंभ खड़ा करने के बारे में है और जापान उसके लिए कुदरती उम्मीदवार है. आकुस की सदस्यता में विस्तार का कोई प्रस्ताव नहीं है.”
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने AUKUS के हालिया कदम की तीखी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि US, UK और ऑस्ट्रेलिया AUKUS के विस्तार के संकेत दे रहे हैं. निंग के मुताबिक, इससे ‘एशिया-पैसिफिक में हथियारों की रेस जोर पकड़ सकती है. इलाके की शांति और स्थिरता बिगड़ सकती है.’
ऑकस से जुड़़े हालिया घटनाक्रम से ‘चीन बेहद चिंतित है.’ चीनी विदेश मंत्रालय ने जापान को इतिहास याद दिलाने की कोशिश की. माओ निंग ने कहा, ‘जापान को इतिहास से ईमानदारी से सबक लेने और सैन्य और सुरक्षा मुद्दों पर विवेकपूर्ण रहने की जरूरत है.’ दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका के परमाणु बम गिराने के बाद जापान एक शांतिवादी देश बन गया था. अपने संविधान में जापान ने कहा कि वह कभी सैन्य बल नहीं रखेगा. करीब एक दशक बाद जापान में सेल्फ-डिफेंस फोर्स बनी. चीन और नॉर्थ कोरिया के बार-बार परेशान करने की वजह से जापान ने हाल के दिनों में डिफेंस क्षमता बढ़ाई है.
दुनिया के नक्शे पर तनाव का तीसरा केंद्र बन रहा साउथ चाइन सी, अमेरिका भी खिसियाया
चीन के प्रभुत्व को काबू में रखने के मकसद से 2021 में AUKUS का गठन किया गया था. ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका इसके सदस्य हैं. AUKUS का पहला स्टेज ‘पिलर’ कहलाता है. इसके तहत ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर-पावर्ड अटैक पनडुब्बियां दी जानी हैं. दूसरे स्टेज में, अत्याधुनिक क्षमताएं हासिल करने के साथ-साथ कई क्षेत्रों में तकनीक साझा करने की योजना है. दूसरे स्टेज यानी ‘पिलर II’ में अन्य देशों से भी सहयोग लिया जाएगा.
AUKUS ने मंगलवार को साझा बयान में कहा, ‘जापान की ताकतों और तीनों देशों के साथ मजबूत रक्षा साझेदारियों को देखते हुए, हम AUKUS के दूसरे स्टेज में जापान के साथ सहयोग पर विचार कर रहे हैं.’ बयान में कहा गया कि AUKUS सदस्य लंबे समय से पिलर II में अन्य देशों को शामिल करने की मंशा जाहिर करते रहे हैं. जापान के अलावा AUKUS के संभावित सदस्यों के रूप में कनाडा, न्यूजीलैंड, भारत और साउथ कोरिया का नाम भी आया है.
पश्चिमी देश भली भांति समझ रहे हैं कि अगर चीन मजबूत हुआ तो सबसे ज्यादा परेशानी उन्हीं को होगी. इसलिए वे लगातार चीन के प्रभुत्व को कम करने में लगे हैं. हिंद-प्रशांत में अमेरिका का सिक्का चलता है और वह चीन को घेरने में जुटा है. विभिन्न गठबंधनों और साझेदारियों के जरिए अमेरिका ने चीन को चारों तरफ से घेरना शुरू किया है. जापान अपनी तकनीकी कुशलता के लिए जाना जाता है, इसलिए AUKUS में उसकी पूछ है.
ईस्ट चाइना नॉर्मल यूनिवर्सिटी के ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन केंद्र के निदेशक चेन होंग को लगता है कि जापान अपने शांतिवादी रुख से हट रहा है. एक्सपर्ट्स ने चेताया कि AUKUS की स्थापना और संभावित विस्तार से परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ सकता है. इससे हथियारों की नई रेस शुरू हो सकती है और इलाके में नए विवाद जन्म ले सकते हैं.