वायु सेना के वाहन पर हमला! चीन में बनी स्टील की गोलियां दाग रहे आतंकी

हमले में 'जैश-ए-मोहम्मद' की प्रॉक्सी विंग 'पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट' का हाथ

नई दिल्‍ली. जम्‍मू-कश्‍मीर के पुंछ जिले में भारतीय वायुसेना (IAF) के काफिले पर घात लगाकर किए गए आतंकी हमले में एक जवान की मौत हो गई थी. चार अन्‍य जवान घायल हो गए थे. अब इस मामले में बड़ा खुलासा हुआ है. शीर्ष खुफिया सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के काफिले पर हमला साजिद जट द्वारा प्रशिक्षित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के 4 आतंकवादियों का काम था. सूत्रों ने बताया कि पिछले हमलों के बाद एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) विकसित की गई थी. जैसे ही बलों ने जोरदार जवाबी कार्रवाई की आतंकवादी भाग गए. हमलावर आतंकवदियों की तलाश जारी है. वायुसेना के काफिले पर हमले की घटना शनिवार शाम करीब 6 बजे हुई, जब कॉनवॉय जारनवाली से वायुसेना स्टेशन लौट रहा था. भारतीय वायुसेना का मूवमेंट संभवतः राडार ऑपरेशन के लिए था. दो लोगों की हालत गंभीर है. इस क्षेत्र में लगभग 17 आतंकवादी साजिद जट्ट समूह से हैं.

हमले में का हाथ

जम्मू कश्मीर में पुंछ के सुरनकोट में आतंकियों ने वायु सेना के वाहन पर घात लगाकर जो हमला किया है, उसमें स्टील की गोलियों का इस्तेमाल हुआ है। ये गोलियां, अमेरिका निर्मित M4 कार्बाइन असाल्ट राइफल और एके-56 राइफल के द्वारा दागी गई हैं। सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों ने बताया, गत वर्ष भी पुंछ में भारतीय सेना के वाहन पर हमला करने के लिए पाकिस्तान के आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ की जम्मू-कश्मीर में सक्रिय प्रॉक्सी विंग ‘पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट’ (पीएएफएफ) ने चीन में निर्मित स्टील की गोलियों का इस्तेमाल किया था। आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही स्टील की गोलियां यानी ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ (एपीआई) का निर्माण चीन में हो रहा है। स्टील की गोली का वार झेलने की क्षमता ‘लेवल-4’ बुलेट प्रूफ कवच में होती है। भारतीय सुरक्षा बलों के ज्यादातर बुलेटप्रूफ वाहन, मोर्चा, जैकेट और पटका, ‘लेवल 3′ श्रेणी के होते हैं।

जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में शनिवार शाम को वायु सेना के काफिले पर हुए आतंकी हमले को लेकर नई जानकारी सामने आई है. हमले के बाद पुलिस और सुरक्षाबलों की ओर से चलाए जा रहे सर्च ऑपरेशन में पता चला है कि आतंकियों ने हमले के लिए जिस गोली का इस्तेमाल किया था वो स्टील की थीं. आमतौर पर गोलियां पीतल की होती है, लेकिन अब आतंकी हमलों के लिए स्टील की गोलियां इस्तेमाल कर रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक, अभी तक की पड़ताल में एक और अहम जानकारी सामने आई है. जांच में पता चला कि आतंकवादियों ने अमेरिकी निर्मित एम-4 राइफल और एके 47 बंदूक के जरिए काफिले पर हमला बोला था. ऐसा पहली बार नहीं है जब आतंकियों ने हमले के लिए स्टील की गोली का इस्तेमाल किया है. पिछले कुछ हमलों में भी स्टील की गोली इस्तेमाल किए जाने की जानकारी सामने आई थी. स्टील की ये गोलियां बुलेटप्रूफ वाहनों और बंकरों को उड़ाने में पूरी तरह सक्षम हैं.

चीन में बन रही स्टील की गोलियां
स्टील की गोलियों को लेकर पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें बताया गया था कि चीन इसका निर्माण करता है. स्टील की ये गोलियां चीन के जरिए पाकिस्तान पहुंचती है और फिर वहां से सेना के जरिए आतंकियों को इसकी सप्लाई की जाती है. अब आतंकी उसी गोलियों का इस्तेमाल सेना के खिलाफ हमले में कर रहे हैं. पीतल की गोली की तुलना में स्टील की गोलियां सस्ती भी होती हैं और घातक भी होती है.

अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों के वापस लौटने के बाद ’85 बिलियन डॉलर’ के एयरक्रॉफ्ट, बख्तरबंद गाड़ियां, रॉकेट डिफेंस सिस्टम, मशीन गन और असॉल्ट राइफल सहित भारी मात्रा में गोला बारूद पर तालिबान का कब्जा हो गया था। तब अमेरिका ने दावा किया था कि उसने तालिबान के हाथ लगे अपने अत्याधुनिक एयरक्रॉफ्ट, बख्तरबंद गाड़ियां व रॉकेट डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय कर दिया है।

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आतंकी समूह इसका इस्तेमाल नजदीक की लड़ाई में करते हैं। महज कुछ मीटर दूरी से एके-47 या इसी सीरिज की किसी दूसरी राइफल से इसका फायर किया जाता है। जब ‘लेवल 3’ वाले बुलेटप्रूफ वाहन, मोर्चा, जैकेट और पटका आदि पर ये गोलियां दागी जाती हैं, तो वे आर-पार चली जाती हैं। उसे किसी वाहन, मोर्चा या बुलेटप्रूफ जैकेट पहने व्यक्ति पर चलाते हैं, तो वह उसे भेदते हुए दूसरे सिरे से बाहर निकल जाती हैं। मौजूदा समय में हर जगह पर ‘लेवल-4’ बुलेटप्रूफ कवच नहीं है। इस कवच को केवल चुनींदा ऑपरेशन में ही इस्तेमाल किया जाता है। 2017 में लेथपोरा स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने इन्हीं गोलियों का इस्तेमाल कर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया था। कई जवानों, जिन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थी, उसे ‘आर्मर पियर्सिंग इन्सेंडरी’ ने भेद दिया था। इसके अलावा वहां लगे मोर्चे भी उसकी मार को नहीं झेल सके थे।
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सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, 2021 में अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद ‘नाटो’ सेनाओं के अनेक हथियार और गोला-बारूद वहीं पर छूट गए थे। तालिबान के कब्जे में आए वे घातक हथियार, अब पाकिस्तान के रास्ते जम्मू-कश्मीर तक पहुंच रहे हैं, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। गत वर्ष के पुंछ हमले के दौरान यह बात सामने आई थी कि तालिबान के पास मौजूद अमेरिकन M16 राइफल और M4 कार्बाइन जैसे हथियार, जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकी संगठन ‘लश्कर- ए-तैयबा’ और ‘जैश-ए-मोहम्मद’ के हाथ लगे हैं।
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इसके बावजूद अफगानिस्तान में ‘चार सी-130 ट्रांसपोर्ट्स एयरक्राफ्ट, 23 एम्ब्रेयर ईएमबी 314/ए29 सुपर सुकानो, 28 सेसेना 208, 10 सेसेना एसी-208 स्टाइक एयरक्रॉफ्ट’ फिक्सड् विंग एयरक्रॉफ्ट बताए गए हैं। इनके अलावा 33 एमआई-17, 33 यूएच-60 ब्लैकहॉक व 43 एमडी 530 हेलीकॉप्टर भी हैं। अमेरिकी 22174-ह्मवे, 634 एमआई 117, 155 एमएक्सएक्स प्रो माइन प्रूफ व्हीकल, 169 एमआई 13 आर्म्ड पर्सनल कैरियर, 42000 पिक अप ट्रक एंड एसयूवी, 64363 मशीन गन, 8000 ट्रक, 162043 रेडियो, 16035 नाइट गॉगल, 358530 असॉल्ट राइफल, 126295 पिस्टल और 176 आर्टलरी पीस भी तालिबान के कब्जे में होने की बात सामने आई थी।

अमेरिका सेना, एम16 स्वचालित राइफलें, साठ के दशक से इस्तेमाल करती रही है। वियतनाम युद्ध, ग्रेनाडा पर आक्रमण, खाड़ी युद्ध, सोमाली गृह युद्ध, इराक और अफगानिस्तान में लड़ाई के दौरान अमेरिकी सेना इसी राइफल से लैस थी। इस राइफल का वजन 7.18 पौंड (3.26 किग्रा) (अनलोडेड) और 8.79 पौंड (4.0 किग्रा) (भारित) है। एम16 से 700-950 राउंड/मिनट फायर हो सकते हैं। M4 भी नब्बे के दशक से अमेरिका सेना में है। इन कार्बाइन को भी अफगानिस्तान युद्ध, इराक युद्ध, कोलंबियाई सशस्त्र संघर्ष, दक्षिण ओसेशिया युद्ध, लेबनान युद्ध, मैक्सिकन ड्रग युद्ध और दूसरे कई ऑपरेशनों में इस्तेमाल किया गया था। इसका वजन 6.36 पौंड (2.88 किग्रा) खाली, 6.9 पौंड (3.1 किग्रा) 30 राउंड मैगजीन के साथ होता है। इसमें से 700-950 राउंड/मिनट फायर होते हैं।

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