एमबीबीएस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सभी छात्रों को समान इंटर्नशिप का स्टाइपेंड मिले

कहा है - MBBS छात्रों को अलग-अलग करके नहीं देख सकते

मेडिकल स्टूडेंट्स ध्यान दें। MBBS पर सुप्रीम का नया आदेश है। खासकर मेडिकल के उन छात्रों के लिए जो विदेश से एमबीबीएस करना चाहते हैं, कर रहे हैं या कर चुके हैं। एक मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एमबीबीएस छात्रों के हित में फैसला सुनाया है। ये मामला मेडिकल इंटर्नशिप का है। सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि विदेश से मेडिकल की पढ़ाई (MBBS) करने वालों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने कहा कि विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स भी अगर भारत में Medical Internship करते हैं, तो इंटर्नशिप के दौरान उन्हें उतना ही वजीफा यानी Stipend दिया जाना चाहिए जितना उनके साथियों को मिल रहा है। वो साथी जिन्होंने भारत के मेडिकल कॉलेजों से एमबीबीएस किया है।

डॉक्टरों की याचिका पर NMC में मांगी रिपोर्ट
दरअसल कुछ डॉक्टरों ने SC में याचिका लगाई थी कि कुछ Medical College विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स को भारतीय मेडिकल ग्रेजुएट के समान इंटर्नशिप का स्टाइपेंड नहीं दे रहे हैं। इन डॉक्टर्स की ओर से पक्ष रख रही वकील तन्वी दुबे की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रसन्ना भालचंद्र वराले की बेंच ने फैसला सुनाया है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नेशनल मेडिकल कमीशन यानी NMC से तीन कॉलेजों का ब्योरा मांगा। इन कॉलेजों में विदेशी चिकित्सा स्नातकों को ‘मानदेय’ के भुगतान की जानकारी मांगी गई। इन कॉलेज में शामिल हैं- अटल बिहारी वाजपेयी सरकारी मेडिकल कॉलेज, विदिशा (एमपी), डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय सरकारी मेडिकल कॉलेज, रतलाम (एमपी) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम मेडिकल कॉलेज, अलवर (राजस्थान)।

अदालत ने कहा कि यह सर्वोपरि है कि वजीफे का भुगतान किया जाए। साथ ही कॉलेजों को चेतावनी दी कि अगर वजीफे के भुगतान पर उसके पहले के आदेश का पालन नहीं किया गया तो सख्त कदम उठाए जाएंगे।

पीठ ने कहा, ‘मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस छात्रों और विदेश से चिकित्सा स्नातक करने वाले छात्रों को अलग-अलग करके नहीं देख सकते।’

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