चुनाव कंट्रोल नहीं कर सकते, डेटा के लिए EC पर भरोसा करना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के वोटों और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों की 100% क्रॉस-चेकिंग की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया।

जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हम मेरिट पर दोबारा सुनवाई नहीं कर रहे हैं। हम कुछ निश्चित स्पष्टीकरण चाहते हैं। हमारे कुछ सवाल थे और हमें जवाब मिल गए। फैसला सुरक्षित रख रहे हैं। इस मामले में सुनवाई आज 40 मिनट सुनवाई चली।

दरअसल इस केस में याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े पैरवी कर रहे हैं। प्रशांत एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से हैं। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से अब तक एडवोकेट मनिंदर सिंह, अफसरों और केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद रहे हैं।

इससे पहले 18 अप्रैल को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने 5 घंटे वकीलों और चुनाव आयोग की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि क्या वोटिंग के बाद वोटर्स को VVPAT से निकली पर्ची नहीं दी जा सकती है।

इस पर चुनाव आयोग ने कहा- वोटर्स को VVPAT स्लिप देने में बहुत बड़ा रिस्क है। इससे वोट की गोपनीयता से समझौता होगा और बूथ के बाहर इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं, हम नहीं कह सकते।

जस्टिस खन्ना: अगर कोई गलत करता है तो उसके परिणाम पता हैं। जिस रिपोर्ट का हवाला याचिकाकर्ता दे रहे हैं, उसमें ही शक शब्द का इस्तेमाल है। वे खुद ही आश्वस्त नहीं हैं।

जस्टिस खन्ना: अगर किसी चीज में सुधार की गुंजाइश है तो इसमें निश्चित सुधार करेंगे। कोर्ट ने दो बार दखल दिया है। पहली बार हमने कहा कि वीवीपैट आवश्यक होनी चाहिए और दूसरी बात हमने इसे एक से बढ़ाकर 5 किया है। जब हमने कहा कि क्या सुधार हैं, जो किए जा सकते हैं तो पहला जो जवाब था, वो ये कि बैलट पेपर्स पर वापस लौट आएं।

जस्टिस खन्ना: यहां दोबारा सुनवाई नहीं हो रही है। FAQs से गुजरने के बाद हमारे कुछ सवाल थे, हमने बस उन्हें रखा।
वरिष्ठ वकील संजय हेगडे ने सुझाव दिया कि हर कैंडिडेट के लिए एक यूनीक बार कोड होना चाहिए।
जस्टिस दत्ता: अब तक तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्ट नहीं आई है। मिस्टर भूषण हम इलेक्शन को या किसी और संवैधानिक अधिकारी को कंट्रोल नहीं कर सकते। अब तक तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्ट नहीं आई है। मिस्टर भूषण हम इलेक्शन को या किसी और संवैधानिक अधिकारी को नहीं संभाल सकते।

जस्टिस दत्ता: हम शक के आधार पर कोई बड़ा फैसला सुना सकते हैं? ये कह रहे हैं कि फ्लैश मेमोरी में कोई प्रोग्राम नहीं है, इसमें सिर्फ चुनाव निशान हैं। ये निशान अपलोड कर रहे हैं, कोई सॉफ्ट वेयर नहीं। जहां तक कंट्रोल यूनिट में माइक्रो कंट्रोलर का मामला है तो यह किसी पार्टी का नाम या कैंडिडेट का नाम नहीं पहचानता है। ये केवल बैलट यूनिट के बटन पहचानता है। बैलट यूनिट के बटन आपस में बदले जा सकते हैं। मैन्युफैक्चरर को यह पता नहीं होता है कि किस पार्टी को कौन सा बटन दिया जाना है।

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