अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब अलगाववाद के समर्थन की आजादी नहीं…जयशंकर ने कनाडा को दी नसीहत

नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि खालिस्तानी अलगाववादी तत्वों को राजनीतिक प्रश्रय देकर कनाडा सरकार यह संदेश दे रही है कि उसका वोट बैंक उसके कानून के शासन से ‘अधिक शक्तिशाली’ है। उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान और पालन करता है, लेकिन इसका मतलब विदेशी राजनयिकों को धमकाने, अलगाववाद को समर्थन देने या हिंसा की वकालत करने वाले तत्वों को राजनीतिक प्रश्रय देने की स्वतंत्रता नहीं है।

पंजाब के सिख प्रवासियों के बीच खालिस्तान समर्थकों का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को कनाडा में प्रवेश करने और रहने की अनुमति कैसे दी जा रही है। उन्होंने कहा, ‘किसी भी नियम-आधारित समाज में आप लोगों की पृष्ठभूमि, वे कैसे आए, उनके पास कौन सा पासपोर्ट था, आदि चीजों की जांच करेंगे।’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘अगर आपके यहां ऐसे लोग हैं जो संदिग्ध दस्तावेजों के आधार पर वहां मौजूद हैं, तो यह आपके बारे में क्या कहता है? यह वास्तव में कहता है कि आपका वोट बैंक आपके कानून के शासन से अधिक शक्तिशाली है।’

कनाडा में भारतीय प्रवासियों की संख्या लगभग 18 लाख है और देश में अन्य दस लाख अनिवासी भारतीय रहते हैं। देश में भारतीय प्रवासियों में ज्यादातर सिख हैं जो वहां की राजनीति में एक प्रभावशाली समूह माने जाते हैं।

पिछले साल सितंबर में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तरफ से खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों की ‘संभावित’ संलिप्तता के आरोप लगाए जाने के बाद भारत और कनाडा के बीच संबंधों में तल्खी आ गई थी।

भारत ने ट्रूडो के आरोपों को ‘बेतुका’ बताते हुए खारिज किया था। भारत कहता रहा है कि मुख्य मुद्दा कनाडा द्वारा कनाडाई धरती से सक्रिय खालिस्तानी समर्थक तत्वों को प्रश्रय देने का है।

जयशंकर ने कहा, ‘यह विकल्पों के खत्म होने का सवाल नहीं है। हमें खेद है कि हमने जो देखा है वह कनाडा की राजनीति की दिशा है जहां अलगाववादियों और चरमपंथी ताकतों, जिनमें से कई खुले तौर पर हिंसा की वकालत करते हैं, को उस देश में राजनीतिक प्रश्रय दिया गया है।’

उन्होंने कहा, ‘और कनाडा की राजनीति में आज प्रमुख पदों पर ऐसे लोग हैं जो वास्तव में उस तरह के अलगाववाद तथा चरमपंथ का समर्थन करते हैं।’ उनकी टिप्पणी इस सवाल के जवाब में आई कि भारत कनाडा से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से किस प्रकार निपटने की योजना बना रहा है और क्या नई दिल्ली के लिए विकल्प खत्म हो रहे हैं।

जयशंकर ने कहा, ‘हम इसे नजरअंदाज करके अच्छे संबंधों की बात नहीं कर सकते।’ उन्होंने कहा कि भारत की चिंताओं पर कनाडा की प्रतिक्रिया यही रही है कि उसके यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

जयशंकर ने कहा, ‘जब भी हमने इस मुद्दे को कनाडाई लोगों के समक्ष उठाया है…यह कोई नया मुद्दा नहीं है…यह लगभग 10 वर्षों से चल रहा है और वे कहते रहते हैं, ओह, ‘हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है’।’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमारे देश में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब विदेशी राजनयिकों को धमकाने की स्वतंत्रता नहीं है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब उन गतिविधियों से नहीं है जो कनाडा में लोग कर रहे हैं जिससे अलगाववाद को इसके समर्थन के कारण हमारे देश को नुकसान होता है।’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब इस तरह का प्रश्रय नहीं है जो विभिन्न संदिग्ध पृष्ठभूमि के लोगों- संगठित अपराध से जुड़े लोगों आदि को भी दिया जाता है।’

पिछले कुछ महीनों में, कनाडा में अपने राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर भारत चिंता व्यक्त करता रहा है और ओटावा से यह सुनिश्चित करने के लिए कहता रहा है कि वे (भारतीय राजनयिक) बिना किसी डर के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें।

पिछले साल सितंबर में ट्रूडो के आरोपों के कुछ दिन बाद, भारत ने ओटावा से समानता सुनिश्चित करने के लिए देश में अपनी राजनयिक उपस्थिति को कम करने के लिए कहा था। इसके बाद कनाडा ने 41 राजनयिकों और उनके परिवार के सदस्यों को भारत से वापस बुला लिया था।

भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि कनाडा के साथ उसका “मुख्य मुद्दा” उस देश में अलगाववादियों, आतंकवादियों और भारत विरोधी तत्वों को दिया गया प्रश्रय है।

पिछले हफ्ते, कनाडाई अधिकारियों ने तीन भारतीय नागरिकों पर निज्जर की हत्या का आरोप लगाया था। बताया जाता है कि तीनों लोग छात्र वीजा पर कनाडा में दाखिल हुए थे। भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि कनाडा ने मामले में अभी तक कोई “विशिष्ट” सबूत या जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है।

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