वेब सीरीज ‘मर्डर इन माहिम’ दर्शकों को अंतिम एपिसोड तक बांधे रखती

मुम्बई (महाराष्ट्र): शहर में युवा लड़कों की लगातार हत्या हो रही है। कोई है, जो LGBTQ समुदाय के लड़कों को निशाना बना रहा है। मुंबई के माहिम इलाके को इन सनसनीखेज हत्याओं ने झकझोर कर रख दिया है। कहानी में एक पुलिस वाला है शिवाजीराव जेंडे, जो इन जघन्य अपराधों की जांच में जुटा है। ‘मर्डर इन माहिम’ एक मनोरंजक मिस्ट्री-ड्रामा है जो दर्शकों को अपनी जटिल कहानी से बांधे रखती है।
जेरी पिंटो के उपन्यास पर आधारित, ‘मर्डर इन माहिम’ शिवाजीराव जेंडे (विजय राज) के इर्द-गिर्द घूमती है। वह माहिम में हो रहे सीरियल किलिंग की जांच में जुटा है। इन तमाम हत्याओं को जोड़ने वाली कड़ी है माहिम रेलवे स्टेशन के दूर छोर पर मौजूद एक शौचालय। फिरदौस रब्बानी (शिवानी रघुवंशी) की सहायता से शिवाजीराव मामले में आगे बढ़ता है, लेकिन इसी बीच एक और हत्या हो जाती है।
जांच उलझने लगती है। शिवाजीराव एक रिटायर क्राइम जर्नलिस्ट पीटर फर्नांडिस (आशुतोष राणा) से मदद मांगता है। पीटर का बीता हुआ कल शिवाजीराव के पिता से जुड़ा हुआ है। पीटर की रिपोर्टिंग में सामने आए भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ही शिवाजीराव के पिता को पुलिस से बर्खास्त कर दिया गया था। इधर, पीटर खुद भी अपने बेटे की सेक्सुअलिटी को लेकर परस्पर विरोधी भावनाओं से जूझ रहा है।
आगे की सीरीज में कई ट्विस्ट और टर्न हैं। जांच कभी सुलझती तो कभी उलझन से भर जाती है। सेक्सुअलिटी को लेकर विमर्श तो है ही, साथ ही बीते हुए कल और वर्तमान की लड़ाई भी है। इन सब के बीच हत्या का रहस्य है, हत्यारा है और न्याय की चाहत है।
‘मर्डर इन माहिम’ का ट्रेलर
यह एक ऐसी सीरीज है जो दर्शकों को अंतिम एपिसोड तक बांधे रखती है। इसमें एक बेहतरीन मिस्ट्री सीरीज के सारे मसाले हैं। अपने रहस्यमय स्क्रीनप्ले से परे ‘मर्डर इन माहिम’ LGBTQ समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी बात करती है। यह समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव और बहिष्कार की सोच पर रोशनी डालती है। कैसे हमारा समाज इस समुदाय के लोगों को लेकर पूर्वाग्रहों से भरा हुआ है, सीरीज उस पर भी बात करती है।
‘मर्डर इन माहिम’ LGBTQ से जुड़े पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं की भी पड़ताल करती है। खासकर एक पिता और उसके बेटे के रिश्ते पर। जहां एक रिटायर पत्रकार अपने बेटे की सेक्सुअलिटी पर शक करता है। वह एक आंतरिक संघर्ष से जूझता है। सीरीज के अधिकतर एपिसोड करीब 40 मिनट लंबे हैं और अच्छी बात यह है कि स्क्रीनप्ले की रफ्तार कहीं कम नहीं होती है। सीरीज में कई ऐसे मौके हैं, जब आप रोमांच से भर जाते हैं। कहानी के साथ-साथ आप भी बतौर दर्शक इंसान के स्वभाव और समाज की असलियत की खोज में शामिल हो जाते हैं।
सीरीज की मूल कहानी मर्डर मिस्ट्री है और इसमें एक के बाद एक कई रहस्यों से पर्दा उठता है। विजय राज और शिवाजी साटम के किरदार के रूप में एक मिडिल क्लास फैमिली के बाप-बेटे के रिश्ते को दिखाया गया है। दोनों ने इसमें जान फूंक दी है। आशुतोष राणा का किरदार भी बाप-बेटे के रिश्ते को नया आयाम देता है। ये चारों किरदार ऐसे गढ़े गए हैं, जो हमें अपने से लगते हैं। जैसे यह हमारे आस-पास ही हो रहा है।
‘मर्डर इन माहिम’ की असली ताकत इसके कलाकार हैं। सभी ने बड़ी ईमानदारी से अपना-अपना किरदार निभाया है। विजय राज और आशुतोष राणा अपने-अपने किरदार में छाप छोड़ते हैं। फिरदौस रब्बानी के रूप में शिवानी रघुवंशी याद रह जाती हैं। वह सीरीज को एक पायदान ऊपर उठाने का काम करती हैं। इसके अलावा राजेश खट्टर ने लेस्ली सिकेरा के किरदार में असाधारण काम किया है।
यह सीरीज हमें बताती है कि पन्नों पर अनुच्छेद 377 भले ही निरस्त हो चुका है। लेकिन LGBTQ समुदाय को लेकर हमारी और हमारे समाज की सोच कैसी है। मुंबई के लोकल स्टेशन पर एक गंदे टॉयलेट को इन लोगों के लिए कथित ‘सेफ हाउस’ के रूप में दिखाया गया है, जो हमें खुद से सवाल पूछने को मजबूर करता है।
हालांकि, ‘मर्डर इन माहिम’ वेब सीरीज की अपनी खामियां भी हैं। सीरीज में एक चाकू पर बार-बार फोकस किया जाता है, जिसका हो रही हत्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। ध्यान भटकाने के लिए किया गया यह प्रयास बेवजह मालूम पड़ता है। लेकिन इन कमियों के बावजूद, यह सीरीज आपका मनोरंजन करती है। इसका रहस्य आपको बांधकर रखता है। यह मानवीय रिश्तों की पड़ताल करती है। कुल मिलाकर, ‘मर्डर इन माहिम’ एक ऐसी वेब सीरीज है, जिसे आप जरूर देखना चाहेंगे।