खास व्यक्ति के खिलाफ जांच अलग-अलग नहीं हो सकती: दिल्ली हाई कोर्ट

गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज

नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी को चुनौती देने और उसके समय पर सवाल उठाने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि आम और खास व्यक्ति के खिलाफ जांच अलग-अलग नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक विचार कानूनी प्रक्रिया के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। नौ बार तलब किए जाने के बावजूद पेश नहीं होने पर केजरीवाल को 21 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था। केजरीवाल ने दलील दी कि ईडी उनसे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से या प्रश्नावली भेजकर पूछताछ कर सकती थी या उनके आवास पर उनसे पूछताछ कर सकती थी।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने फैसले में कहा अदालत की राय में यह दलील खारिज करने योग्य है, क्योंकि भारतीय आपराधिक न्यायशास्त्र के तहत जांच एजेंसी को किसी व्यक्ति की सुविधा के अनुसार जांच करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है। खास व्यक्ति या आम जन की जांच अलग-अलग नहीं हो सकती। न्यायाधीश ने कहा कि कानून अपना काम करता है और अगर जांच एजेंसी को जांच के लिए हर व्यक्ति के घर जाने का निर्देश दिया जाएगा, तो जांच का मूल उद्देश्य विफल हो जाएगा और अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी।

अदालत ने कहा कि इस दलील को स्वीकार करने का मतलब यह होगा कि यदि याचिकाकर्ता को अक्टूबर 2023 में ही गिरफ्तार कर लिया गया होता, तो उसकी गिरफ्तारी को दुर्भावना के आधार पर चुनौती नहीं दी जाती, क्योंकि उस समय चुनाव घोषित नहीं हुए थे। न्यायाधीश ने कहा, केजरीवाल को आसन्न लोकसभा चुनाव के बारे में भी पता होना चाहिए था, जो मार्च 2024 के महीने में घोषित होने की संभावना थी। उन्हें पता होगा कि लोकसभा चुनाव कब घोषित होंगे और वह उस समय बहुत व्यस्त होंगे।

पीठ ने कहा, यह अदालत कानूनों की दो अलग-अलग श्रेणियां नहीं बनाएगी। ऐसा नहीं हो सकता कि एक श्रेणी आम नागरिकों के लिए हो और दूसरी मुख्यमंत्री या सत्तारूढ़ किसी व्यक्ति के लिए, जिसे केवल सार्वजनिक पद पर होने के आधार पर विशेष सुविधा प्रदान की जाए…सार्वजनिक हस्तियों की जवाबदेही जनता के माध्यम से होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि वह केजरीवाल की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकती कि उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों के कारण गिरफ्तार किया गया। अदालत ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को समय के संदर्भ में नहीं, बल्कि केवल कानून के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि केजरीवाल की दलील को स्वीकार करने का मतलब उस व्यक्ति को स्थिति का फायदा उठाने और बाद में दुर्भावनापूर्ण दलील देने की अनुमति देना होगा, जो जांच एजेंसी के सामने खुद को पेश करने में देरी करता है। न्यायाधीश ने कहा ईडी के पास पर्याप्त सामग्री थी, जिसके कारण उसे वर्तमान आरोपियों को गिरफ्तार करना पड़ा। केजरीवाल का जांच में शामिल न होना केवल एक सहायक कारक था, एकमात्र कारक नहीं था। अदालत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान मामला केंद्र और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच टकराव का नहीं है, और केवल मामले के कानूनी गुण-दोष पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।

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