भारत में टेंपल इकोनॉमी 3.02 लाख करोड़ की, कुल जीडीपी का 2.32 फीसदी
अमेरिकी खजाने से 3 गुना ज्यादा सोना है भारतीयों और मंदिरों के पास

नई दिल्ली: बात तब दसवीं सदी से भी काफी पहले की है, जब ओडिशा के दक्षिण में कोरापुट जिले में सबर जनजाति रहा करती थी। उनका एक राजा था विश्व बसु। ये सभी उस क्षेत्र में एक पत्थर की प्रतिमा को पूजते थे। ये जनजाति इसी प्रतिमा को अपने अस्तित्व से जोड़कर देखती थी। इसी ताकत से वो अपना इलाका किसी को जीतने नहीं देते थे। उस वक्त पुरी का राजा था, जो अपना साम्राज्य बढ़ाने में लगा हुआ था। मगर, उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोरापुट की यही जनजाति थी।
राजा ने बहुत कोशिश की, मगर वह इन्हें जीत नहीं पाया। आखिरकार उसने अपने चतुर सेनापति विद्यापति को कोरापुट भेजा, जो भेष बदलकर इन आदिवासियों के बीच रहने लगा। अपनी किताब ‘उदीप्त उड़ीसा: अब भी दरिद्र क्यों’ में दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे डॉ. मनोरंजन मोहंती कहते हैं कि ओडिशा की कहानी भगवान जगन्नाथ के बहाने उड़िया संस्कृति और अर्थव्यवस्था को अपने अधिकार में लेने से जुड़ी है।
राजा की बेटी को प्यार में उलझाकर जाना भगवान जगन्नाथ का राज
डॉ. मोहंती के अनुसार, विद्यापति ने विश्व बसु की बेटी ललिता को अपने प्यार के जाल में उलझा लिया और उससे शादी कर ली। जब काफी समय बीत गया तो विद्यापति ने अपनी पत्नी ललिता से कहा कि वो उस भगवान को देखना चाहता है, जिससे उन आदिवासियों को ताकत मिलती थी। तब ललिता ने कहा कि हमारे भगवान तक पहुंचने का रास्ता किसी बाहरी को नहीं दिखाया जा सकता। ऐसे में अगर आपको भगवान के दर्शन करने हैं तो आपकी आंखों पर पट्टी बांधकर वहां तक ले जाना होगा। विद्यापति मान गया।
आंखों पर पट्टी बांधकर जाते समय छीटता गया सरसों के बीज
आंखों पर पट्टी बांधकर जब भगवान की प्रतिमा के पास ले जाया जा रहा था, तब रास्ते की पहचान के लिए विद्यापति ने अपनी मुट्ठियों में सरसों छीटता गया। बाद में जब वह पुरी चला गया तो उसने बारिश के बाद कोरापुट पर सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उस दौरान तब तक सरसों उग आई थी, जो भगवान की प्रतिमा तक पहुंचने की पहचान बनी। विश्व बसु हार गए, तब भगवान जगन्नाथ को विद्यापति अपने साथ पुरी लेकर आए। वह अपने साथ पत्नी ललिता और ससुर को भी लेकर आए। बाद में 12वीं सदी के आसपास गंग वंश के शासक अनंत वर्मन चोड़गंग देव ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाया और उनके लिए रत्न भंडार भी बनवाया।
जब अंग्रेज कलकत्ता से ले आए काली मंदिर की चिट्ठी
1803 की बात है, जब एक अंग्रेज कमांडर कलकत्ता स्थित ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से मंजूरी लेकर पुरी पहुंचे और उन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर के एक ब्राह्मण को काली मंदिर की चिट्ठी दी और कहा कि हम भगवान जगन्नाथ मंदिर की पूजा में मदद करेंगे। 1817 में अंग्रेजों और स्थानीय राजा के बीच बड़ी लड़ाई हुई, जिसमें राजा हार गया। तभी से यह मंदिर अंग्रेजों के कब्जे में रहा। आजादी के बाद यह मंदिर केंद्र सरकार के अधिकार में हो गया।