उत्तराखण्डः दशकों बाद सर्व सिद्धि योग में मनाया जा रहा गंगा दशहरा
गंगा अवतरण दिवस, इस दिन स्नान, दान व तप करने से फल की प्राप्ति होती है

टिहरी (देहरादून): भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पोषक मां गंगा अवतरण दिवस ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया है। कई दशकों बाद इस वर्ष गंगा दशहरा पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग और व्यतिपात योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि इस दिव्य संयोग पर गंगा दशहरा पर्व पर गंगा में स्नान, दान व तप करने के कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
“गंगा दशहरा” हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो गंगा नदी की पूजा के लिए समर्पित है। यह त्योहार हिन्दू माह ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गंगा की स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति की जाती है। भक्त नदी के किनारे एकत्र होते हैं, पवित्र स्नान करते हैं, रीति-रिवाज करते हैं और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और इच्छाओं की पूर्ति होती है। यह त्योहार गंगा को संरक्षित और सुरक्षित रखने के महत्व को भी दर्शाता है, जो हिन्दू धर्म में अत्यधिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है।
राजा भगीरथ अपने पुरखों को तारने के लिए मां गंगा को धरती पर लाए थे। युगों-युगों से मां गंगा प्राणी मात्र को जीवनदान के साथ ही मुक्ति भी देती आ रही है। स्वर्ग लोक से देवी गंगा ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार दशमी तिथि, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग की साक्षी में पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।
मान्यतानुसार इस बार कई दशकों के बाद गंगा दशहरे पर पांच जून को कई दिव्य महायोग बन रहे हैंए जिन योगों में देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इस साल गंगा दशहरा पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग और व्यतिपात योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इससे गंगा दशहरा पर्व की महत्ता और अधिक बढ़ गई है।
इन दुर्लभ योगों के कारण गंगा दशहरा पर्व पर स्नान, दान, जप, तप, व्रत व उपवास का बहुत महत्व है। गंगा दशहरा स्नान एवं दान के साथ ही तन-मन को शुद्ध करने का पर्व है। ज्योतिषाचार्य उदय शंकर भट्ट का कहना है कि विशिष्ट योग की साक्षी में गंगा माता का पूजन विशेष फल देने वाला होगा। कल्याण करने वाली माता के रूप में मां गंगा भारतीय संस्कृति की रीढ़ है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा तटों पर जाने-अनजाने हम पुण्य के बजाए कई पाप कर्म करते हैं। जिसमें गंगा स्नान के दौरान शरीर के मैल को गंगा में नहीं धोना चाहिए। कपड़ों को गंगा में भी नहीं धोना चाहिए। यथाशक्ति दान के साथ ही गंगा में मिट्टी के दीपक में शुद्ध घी दीपक जलाकर अर्पण करना चाहिए। प्लास्टिक और अन्य अजैविक पदार्थों को गंगा में नहीं फेंकना चाहिए।