क्या है रिफ्यूजी कन्वेंशन, जिसके कारण केन्द्र सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने से मना कर दिया?

अवैध ढंग से देश के भीतर आए लोग घुसपैठिए हैं, न कि शरणार्थी

नई दिल्ली: अवैध रोहिंग्याओं को वापस उनके देश म्यांमार भेजने की शुरुआत मणिपुर से हो चुकी है. साथ ही घुसपैठ कर चुके इन लोगों की पहचान भी हो रही है ताकि सबको डिटेंशन सेंटर से होते हुए वापस लौटाया जा सके. ये सब तब हो रहा है, जब हम सीएए के तहत 3 पड़ोसी देशों की 6 माइनोरिटीज को अपना नागरिक बनाने जा रहे हैं.

केंद्र ने क्यों दिया कोर्ट को जवाब
असल में कोर्ट में एक याचिका डाली गई, जिसमें रोहिंग्याओं के पक्ष में गुहार लगाते हुए कहा गया कि उन्हें डिटेंशन सेंटरों से आजाद कर दिया जाए. बता दें कि फॉरेनर्स एक्ट तोड़ने के आरोप में ये समुदाय सेंटरों में रखा गया है. इसी याचिका का जवाब देते हुए सेंटर ने साफ कर दिया कि अवैध ढंग से देश के भीतर आए लोग घुसपैठिए हैं, न कि शरणार्थी.

सेंटर के दूसरे तर्क भी थे. न केवल रोहिंग्या मुस्लिमों ने एक्ट तोड़ा, बल्कि उनके बिना दस्तावेजों का रहना खतरनाक है. लगातार कई रास्तों से वे भीतर आ सकते हैं, जो कि नेशनल सिक्योरिटी के लिए ठीक नहीं. एक दलील और भी है. केंद्र ने कहा कि हमारे यहां खुद ही आबादी ज्यादा है, और रिसोर्स सीमित. ऐसे में अपने नागरिकों की देखभाल पहले जरूरी है. अगर और लोगों को नागरिकता या शरण दी जाए तो असल नागरिक प्रभावित होंगे.

क्या है फॉरेनर्स एक्ट, जिससे उल्लंघन का आरोप इनपर
सरकार अगर ये आइडेंटिफाई कर ले कि फलां शख्स बगैर दस्तावेजों और इजाजत के देश के भीतर घुस आया है, तो फॉरेनर्स एक्ट के तहत उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. यहां तक कि दोष साबित होने पर 3 महीने से लेकर 8 साल की सजा भी हो सकती है. साथ ही उसे वापस उसके देश भेजने की कार्रवाई भी की जा सकती है. ये किसी भी देश के शरणार्थियों के मामले में लागू हो सकता है लेकिन सरकार तब तक एक्शन नहीं लेती, जब तक किसी के चलते मुश्किल न खड़ी हो जाए.

एक- रोहिंग्या मुस्लिमों का फॉरेनर्स एक्ट को तोड़ना.
दूसरा- भारत में अलग से रिफ्यूजी पॉलिसी न होना.

क्या देश में शरणार्थी नीति वाकई नहीं?
भारत हमेशा से ही अपने यहां ठौर लेने आने वालों के लिए उदार रहा. यहां रोहिंग्याओं समेत कई दूसरी नेशनेलिटी के लोग रह रहे हैं. हालांकि ये भी सच है कि उदारता के बाद भी हमने कोई औपचारिक रिफ्यूजी पॉलिसी नहीं रखी. असल में हमने रिफ्यूजी कंवेंशन और 1967 प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं. उसने यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) के इस दस्तावेजों पर रजामंदी नहीं दी. ये वो दस्तावेज हैं जो मानते हैं कि अगर किसी ने देश में शरण ली, तो उसे वापस वहां नहीं लौटाया जा सकता, जहां वो खुद को खतरे में मानता है.

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कंवेंशन 1951 पर साइन नहीं किए क्योंकि वे साउथ एशियाई सीमाओं की अस्थिरता को देख रहे थे, और नहीं चाहते थे कि देश की सुरक्षा खतरे में आए. दस्तखत न करने के कारण भारत सरकार के पास हक है कि वो तय करे कि किसे रहने दिया जाए, और किसे नहीं.

भारत में लगातार आ रहे विदेशी
शरणार्थी कंवेंशन पर हामी न भरने के बाद भी देश लगातार शरण देता रहा. साल 2020 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत को शरणार्थियों की टॉप पसंद बताया गया. हमारा देश दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन तीन देशों में सबसे ऊपर है, जिसने इसी एक साल में सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी. यहां तक कि प्रवासियों की संख्या भी यहां कम नहीं. डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति प्रवासी है.

हमारे यहां लगभग 48,78,704 प्रवासी हैं, जिनमें 2,07,334 रिफ्यूजी भी शामिल हैं. हालांकि ये संख्या काफी ज्यादा हो सकती है क्योंकि इनका कोई दस्तावेज नहीं.

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