‘स्लीप पैरालाइसिस’ – बढ़ता है स्लीप डिसआर्डर
बचने के लिये मजबूत इच्छा शक्ति की है जरूरत

डॉ राजेश दीक्षित : यदि नींद से अचानक उठने के बाद व्यक्ति न बोल पाये और हिल-डुल भी न पाये तो यह नींद से जुड़ी गंभीर समस्या है। इसे मेडिकल साइंस में ‘स्लीप पैरालाइसिस’ कहा जाता है। अक्सर यह कोई बुरा सपना देखने के बाद होता हैं। कुछ लोग भूत-प्रेत से भी इसे जोड़ कर देखते हैं, जो महज अंधविश्वास है।
क्या है स्लीप पैरालाइसिस
दरअसल, नींद में सपने देखने के बाद मसल्स सक्रिय हो जाते हैं। कई बार डरवाने सपनों के कारण व्यक्ति मसल्स के सक्रिय होने से पहले हीं उठ जाता है। इस कारण वह नींद से जागने के बाद भी ठीक से हिल नहीं पाता है। यही स्लीप पैरालाइसिस है। यह अवस्था बहुत कम समय (अमुमन आधा मिनट से 3 मिनट तक) के लिये होती है। स्लीप पैरालाइसिस के दौरान मरीज दबाव, घुटन, और असहाय महसूस करता हैं। लंबे समय तक स्लीप पैरालाइसिस से पीडित रहने पर मरीज को कई अन्य स्लीप डिसआर्डर जैसे- इनसोम्निया, नार्कोलेप्सिस आदि के होने की भी आशंका हो सकती है।
किसे होता है यह रोग
स्लीप पैरालाइसिस किसी भी उम्र में हो सकता है। यह रोग 14 से 17 साल के उम्र में सबसे पहले देखने को मिलता है। आम तौर पर कम नींद लेनेवाले, लगातार अपना नींद का शड्यूल बदलने वाले, मेंटल प्रॉब्लम से ग्रस्त लोगों में यह रोग ज्यादातर देखा जाता है। गलत तरीके से सोने वाले लोग भी इस रोग से ग्रसित हो सकते हैं। इसके अलावा अधिक नशा करना या स्ट्रेस (तनाव) को भी इसका कारण माना जाता है।
बरते सावधानियां
* अपनी नींद पूरी करें, छह से आठ घंटे की नींद लेनी चाहिए।
* सोने से पहले स्ट्रेस फ्री होने का प्रयास करें। तनाव के कारण स्लीप पैरालाइसिस की आशंका बढ़ जाती है।
* सोने की मुद्रा बदलते रहें।
* यदि पर्याप्त नींद नहीं आती है, तो डॉक्टर से संपर्क कर के पूरा इलाज लेना चाहिए।
बचने के लिये मजबूत इच्छा शक्ति की है जरूरत
आमतौर पर स्लीप पैरालाइसिस का कोई इलाज नहीं है। मगर स्लीप पैरालाइसिस से होनेवाले समस्याओं का प्रॉपर ट्रीटमेंट किया जा सकता है। जैसे- स्लीप साइकल को सही तरीके से रेगुलेट करने के लिये एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का इस्तेमाल, अन्य स्लीपिंग डिसआर्डर का ट्रीटमेंट आदि। शुरूआत में डॉक्टर मरीज के लक्षणों के आधार पर उन्हें गाइड करते हैं। जैसे स्लीपिंग हैबिट को बदलना। आमतौर पर छह से आठ घंटे की नींद लेना।
स्लीप पैरालाइसिस से कई भम्र भी जुड़े हुए हैं, जैसे- कोई भूत ऊपर बैठ जाता है और वह आवाज नहीं निकलने देता है और न ही शरीर को हिलने देता है। लंबे समय तक इस प्रकार की समस्या से जुडनेवाले मरीज कई अन्य मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। डॉक्टर मानते हैं कि यदि मरीज की इच्छाशक्ति प्रबल है, तो वह स्लीप पैरालाइसिस से निजात पा सकता है, बशर्ते कि उसे सही गाइडेंस मिले। कमजोर इच्छाशक्ति वाला मरीज इस रोग से छूटकारा नहीं पाता है और वह कई अन्य मानसिक बीमारियों से भी ग्रसित हो जाता है।
दो प्रकार की यह समस्या होती है :-
1. प्री-डोरमिटल स्लीप पैरालाइसिस
यह तब होता है जब मरीज बिस्तर पर सोने के लिये लेटने जाता है। इस प्रकार से ग्रस्त मरीज जब सोते हैं. तो उनका शरीर धीरे-धीरे रिलैक्स की मुद्रा में पंहुचता है और वह अपने शरीर को न हिला पाता है और न बोल पाते हैं। हालांकि इस प्रकार के पैरालाइसिस का पता देर से चलता है। क्योंकि अक्सर इससे पीड़ित मरीज इस बात पर बहुत देर से गौर करता है।
2. पोस्ट-डोरमिटल स्लीप पैरालाइसिस
स्लीप पैरालाइसिस का यह प्रकार नींद से जगने के कुछ समय के अंदर देखने को मिलता है। सोने के दौरान हमारा शरीर आरइएम (रेपिड आइ मूवमेंट) और एनआरइएम (नॉन रेपिड आइ मूवमेंट) साइकल के बीच नींद लेता है। दोनों साइकल डेढ़ घंटे का होता है। पहले एनआरइएम साइकल शुरू होता है।
इस दौरान आंखों का मूवमेंट बिल्कुल बंद रहता है और शरीर का हर अंग आराम की मुद्रा में पंहुच जाता है। एनआरइएम साइकल की अवधि समाप्त होने के बाद आरइएम साइकल का समय आरंभ होता है। आरइएम साइकल में आंखों का मूवमेंट शुरू हो जाता है। (इसी वजह से कम सपने भी देखते हैं, मगर शरीर के अन्य अंग या भाग भी आराम की मुद्रा में होते हैं। इससे ग्रस्त मरीज यदि आरइएम साइकल खत्म होने से पहले उठता है, तो वह कुछ समय के लिये न तो वह अपने शरीर को हिला पाता है और न हीं बोल पाता है।
मरीज को ध्यान रखना चाहिए
यदि आप स्लीप पैरालाइसिस रोग से ग्रसित हैं और कई बार ऐसी अवस्था से गुजर चुके हैं, जब आप न तो अपना शरीर हिला पाते हैं और न बोल पाते हैं तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंः –
* इस अवस्था में ज्यादा उदास (डिप्रेस) न हों।
* स्वयं को समझाएं कि यह रोग नहीं है।
* मन को यह भी समझाएं कि भूत-प्रेत नहीं होता है।
* हो सके तो ऐसी स्थिति दोबारा होने का प्रयास न करें।
* ज्यादा तनाव (स्ट्रेस) न लें, क्योंकि इसका असर सीधे हृदय पर पड़ता है।
* स्वयं संयमी बने और संयम बनाये रखें।
नार्कोलेप्सी में होती है एक्सीडेंट की आशंका :- स्लीप पैरालाइसिस और उसी के जैसी मुख्य रूप चार तरह की समस्याएं होती हैं, जो इस प्रकार हैं –
1. नार्कोलेप्सी
इस समस्या के कारण दिन में नींद अधिक आती है। इसके कारण मरीज कोई भी काम करते-करते सो जाता है। मरीज दिन भर उंघता रहता है और काफी थकान महसूस करता है। कितना भी वह सो ले, लेकिन लगता है, जैसे वह सोया नहीं है। यह समस्या मोटे और बुजुर्ग लोगों में अधिक होती है। इसके कारण सबसे बड़ा खतरा एक्सीडेंट का होता है। ऐसा अक्सर गाड़ी चलाते वक्त नींद आने के कारण होता हैं। इस रोग के उपचार के लिये डॉक्टर आमतौर पर मोडाफिनिल नामक दवा देते हैं।
2. कैटालेप्सी
यह समस्या अत्याधिक काम करने की वजह से होती है। इस अवस्था में अधिक थकान की वजह से अचानक से शरीर ढीला पड़ जाता है और मरीज चलते समय हीं अचानक से गिर जाता है।
3. माइक्रोस्लीप
इसमें मरीज कोई काम नींद में हीं कर लेता है, लेकिन नींद से जागने के बाद उसे पता हीं नहीं चलता है कि उसने काम किया है।
4. स्लीप पैरालाइसिस
इसमें सो कर उठने के बाद मरीज का हाथ-पैर सुन्न हो जाता है। इसके लिये मुख्य रूप से पॉली सोनोग्राफी जांच की जाती है। इसके अलावा इइजी और इसीजी जांच भी करायी जाती है। इसी मशीन से मरीज के हाथ-पैर के पावर की भी जांच किया जाता है। इन सब का उपचार एंटी डिप्रेसेंट से किया जताा है। हालांकि डॉक्टर डायग्नोसिस के अनुसार हीं दवाइयां देते हैं। अगर किसी को ऐसा कुछ भी अनुभव होता है, तो इसका पूरा उपचार लेना चाहिए।
नींद से जुड़ी कुछ अन्य समस्याएं
नींद से जुड़ी समस्याएं दो प्रकार की होती हैं। कम नींद आने से जुड़ी समस्याओं को हाइपोसोम्निया और अधिक नींद से जुड़ी समस्याओं को हाइपरसोम्निया कहा जाता है।
हाइयोसोम्निया के अंतर्गत निम्नलिखित समस्याएं देखने को मिलती हैं।
इनसोम्निया : – यह एक ऐसी समस्या है. जिसमें मरीज को चाह कर भी नींद नहीं आती है। लेटने के बाद भी वह सो नहीं पाता है।
स्लीप टेरर : – इस समस्या में मरीज सोने के दौरान घबराकर उठ जाता है। मरीज किसी डरावना सपना देखकर अकस्मात डर जाता है। इस डर के कारण उसे दोबारा सोने की हिम्मत भी नहीं हो पाती है।
स्लीप वाकिंग : – इस रोग में मरीज को नींद में चलने की बीमारी होती है। अवसर यह कम सोने की वजह से होता है।
हाइपरसोम्निया में होती हैं ये समसयाएं
इन्यूरेसिस : – बिस्तर गिला करने की यह बीमारी ज्यादतर बच्चों में होती है। इस समस्या से बचने के लिये मरीज को सोने से एक डेढ़ घंटे पहले कोई तरल पदार्थ आहार में नहीं देना चाहिए। हो सके तो बच्चा को जगा कर पेशाब करा देना चाहिए।
स्लीप एप्निया : – इस रोग में नींद की दशा में मरीज की सांस की नली में रुकावट
होती है। कई बार नींद में हीं मरीज की मौत भी हो जाती है। स्लीप एप्निया में मरीज की सांस की नली में सीपैप (कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) मशीन लगायी जाती है। यह मशीन 40-50 हजार रुपये की आती है और बाकी इलाज का खर्च 15 हजार रुपये आता हैं। डेंटिस्ट एक एप्लायंस भी बनाते हैं, जिसमें नीचे का जबड़ा थोड़ा आगे चला जाता है। इससे सांस लेने में होनेवाली रूकावट खत्म हो जाती है।
नींद और डायबिटीज : – डायबिटीज और नींद का आपस में गहरा नाता हैं। नींद नहीं आने पर शूगर होने की आशंका बढ़ जाती है, तो डायबिटीज के 40 फीसदी मरीजों में स्लीप डिसआर्डर से ग्रस्त होते हैं। नींद पूरी न होने पर मानसिक तनाव होता है। इससे बीपी और शूगर का लेवल बढ़ता है। इसी तरह स्लीप डिसआर्डर का मरीज रात में सोता नहीं है, तो अक्सर वह बार-बार खाता रहता है। इससे मोटापा बढ़ता है और शूगर की आशंका भी होती है। अगर डायबिटीज के मरीज का प्रोस्ट्रेट बढ़ा हुआ है या शूगर कंट्रोल में नहीं है. तो बार-बार टॉयलेट जाता है। इससे नींद खराब होती है। साथ हीं यूरीन इन्फेक्शन की शंका भी ज्यादा होती है। कुछ मरीजों को पैरों में जख्म हो सकते हैं। इसलिये डायबिटीज के मरीजों को अपनी नींद का खास ख्याल रखना चाहिए।
नींद न आने की वजहें : – कभी-कभी नींद न आने में दिक्कत हो तो, उसकी वजह
कोई बीमारी हो सकती है। मसलन बुखार, चोट, दर्द, आदि में नींद खराब होती है। ज्यादा सफर करने और बार-बार टाइम जोन बदलने, शिफ्ट में काम करने, सूरज की रोशनी से दूर रहने, दिन में ज्यादा सो लेने से भी नींद नहीं आती। लेकिन ये तत्कालिक वजहें हैं। लंबे समय तक नींद न आने की समस्या बनी रहे, तो डिप्रेशन, एंजाइटी, तनाव, ज्यादा शराब पीना, या दूसरे नशे के अलावा कुछ दवाओं से भी हो सकता है। पार्किंसन, हाइबीपी, और डिप्रेशन की दवाएं भी नींद को डिस्टर्ब करती है।
डॉ राजेश दीक्षित : कैंसर रोग विशेषज्ञ (राष्ट्रीय अध्यक्ष – इंडियन बोर्ड आफ योगा एंड नेचुरोपैथी मेडिसिन नई दिल्ली)