अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में इतना हंगामा के पीछे का जॉर्ज सोरोस कनेक्शन!

भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले अरबपति जॉर्ज सोरोस

वाशिंगटन: अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालयों में चल रहे फिलिस्तीन विरोधी प्रदर्शनों के बारे में बड़ा खुलासा हुआ है। जानकारी सामने आई है कि मोदी विरोदी अरबपति जॉर्ज सोरोस और उनके कट्टर वामपंथी समर्थक इन आंदोलनों को फंडिंग करके यूनिवर्सिटी कैंपस में अशांति को बढ़ावा दे रहे हैं।

अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पिछले सप्ताह एक कैंपस पर छात्रों के कब्जा करने के बाद ये प्रदर्शन देश भर में फैल गया है। कई जगहों पर छात्रों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई है, जिसके बाद अमेरिकी प्रशासन को कैंपस में सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है। हार्वर्ड, येल, बर्कले, ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी और जॉर्जिया में एमोरी समेत कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्र टेंट लगाए गए हैं। इनके बारे में पता चला है कि ये जॉर्ज सोरोस से वित्त पोषित स्टूडेंट्स फॉर जस्टिस इन फिलिस्तीन (SJP) और यूएस कैंपेन फॉर फिलिस्तीनी राइट्स (USCPR) द्वारा स्थापित किए गए हैं।

एसजेपी और जॉर्ज सोरोस का कनेक्शन
स्टूडेंट्स फॉर जस्टिस इन फिलिस्तीन यानी एसजेपी और यूएससीपीआर की फंडिंग जॉर्ज सोरोस और दूसरे सहयोगियों द्वारा की जाती है। न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम तीन कॉलेजों में विरोध प्रदर्शनों को भड़काने के पीछे ऐसे लोग शामिल हैं, जिन्हें जॉर्ज सोरोस के द्वारा वित्त पोषित यूएस कैंपेन फॉर फिलिस्तीनी राइट्स (USCPR) की तरफ से भुगतान किया गया है। इसके लिए समूह में आने वाले बाहरी प्रदर्शनकारियों को 7800 डॉलर और कैंपस के अंदर 2880 से 3660 डॉलर दिए गए हैं। इसके बदले इन्हें सप्ताह में 8 घंटे इन आंदोलनों में हिस्सा लेना है।

यूएससीपीआर को जार्ज सोरोस के ओपेन सोसायटी फाउंडेशन की तरफ से 2017 के बाद से 3 लाख डॉलर दिए जा चुके हैं, जबकि रॉकफेलर्स ब्रदर्स फंड से इस संस्था को 2019 के बाद 3.55 लाख डॉलर की फंडिंग की गई है। इन संगठनों से जुड़े कई बड़े चेहरे इन छात्र प्रदर्शनों में देखे जा चुके हैं। बुधवार को टेक्सास यूनिवर्सिटी में एक प्रदर्शन के दौरान एसजेपी की पूर्व अध्यक्ष निदा लाफी को इजरायल के खिलाफ भाषण देते हुए देखा गया था।

भारत ने क्या कहा?
भारत के विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राज्य भर के कॉलेजों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विभिन्न परिसरों में पुलिस अधिकारियों ने सैकड़ों प्रदर्शनकारी छात्रों को गिरफ्तार कर लिया है, जिससे अधिकारों के हनन की चिंताएं पैदा हो गई हैं।

नई दिल्ली ने वाशिंगटन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की सलाह दी है। चूंकि भारत परंपरागत रूप से अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचता है, इसलिए यह नवीनतम बयान नीति में बदलाव को दर्शा सकता है। अतीत में, अमेरिका ने नए नागरिकता कानून और किसानों के विरोध से जुड़े घरेलू नीतिगत फैसलों पर भारत की आलोचना की है। ऐसे में क्या जा रहा है कि भारत अब अमेरिका को अपनी ही दवा का स्वाद चखाने की कोशिश कर रहा है?

बाइडेन-नेतन्याहू ने क्या कहा?
अमेरिका में इजरायल विरोध प्रदर्शनों को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खतरनाक बताया है। उन्होंने इस प्रदर्शनों को रोकने के लिए और कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इतना ही नहीं, नेतन्याहू ने इन प्रदर्शनों की तुलना नाजी जर्मनी से भी कर दी। वहीं व्हाइट हाउस ने भी इन प्रदर्शनों की निंदा करते हुए इसकी तुलना आतंकवादियों की भाषा से की है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इनकी निंदा की है। बाइडेन ने मीडिया से बात करते हुए न सिर्फ इजरायल विरोधी प्रदर्शनकारियों की निंदा की, बल्कि उन लोगों की भी आलोचना की जिन्हें ये नहीं पता कि फिलिस्तीन में क्या चल रहा है।

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