ईद से ठीक पहले तालिबान ने लिया ‘हिंदू और सिखों’ को जमीनें वापस लौटाने का फैसला

काबुल: अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बड़ा फैसला लिया है। अफगान तालिबान ने हिंदू और सिखों को जमीनें वापस लौटाने का फैसला लिया है। अफगानिस्तान के तालिबान अधिकारियों ने हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों को उनकी निजी प्रॉपर्टी बहाल करने के लिए काम भी शुरू कर दिया है। तालिबान अधिकारी इन संपत्तियों को पूर्व की अमेरिका समर्थित सरकार से जुड़े लोगों और अफसरों से वापस ले रहे हैं। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के इस फैसले को भारत की विदेश नीति के लिए भी एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। भारत के साथ जुड़ने की एक और कोशिश में अफगानिस्तान में तालिबान अधिकारी अब हिंदुओं और सिखों को उनकी निजी जमीन वापस करने की पहल कर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इन संपत्तियों को पिछले पश्चिमी देशों के समर्थन वाले शासन से जुड़े सरदारों से पुनः हासिल किया जा रहा है. तालिबान के एक अधिकारी के मुताबिक यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह पहल अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा अनुभव किए गए अन्याय को खत्म करने में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करती है. जिन्होंने लंबे समय तक विस्थापन और हाशिए पर रहने के हालात को सहन किया है.
करीब तीन साल पहले जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था, तब बड़ी तादाद में हिंदू और सिख वहां से चले गए थे. अब शुभ खबर ये है कि तालिबान सरकार ने हिंदू और सिखों को उनकी जमीनें वापस लौटाने का फैसला किया है. अधिकारियों ने हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों को उनकी निजी प्रॉपर्टी बहाल करने के लिए काम भी शुरू कर दिया है.
भारतीय अधिकारी इस घटनाक्रम को भारत के प्रति सकारात्मक संकेत के रूप में देखते हैं. एक उल्लेखनीय घटनाक्रम हिंदू और सिख समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य नरेंद्र सिंह खालसा की वापसी भी है, जो हाल ही में कनाडा से अफगानिस्तान वापस आए थे. ‘पहले के शासन के दौरान सरदारों द्वारा हड़पी गई सभी संपत्तियों को उनके मालिकों को वापस करने के लिए न्याय मंत्री की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की गई है.’
1970 के दशक के अंत में शुरू हुआ हिंदुओं और सिखों का पलायन
7 मार्च को, विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डेस्क की देखरेख करने वाले संयुक्त सचिव जे.पी. सिंह ने काबुल का दौरा किया और ‘विदेश मंत्री’ अमीर खान मुत्ताकी के साथ आईएसकेपी से निपटने के लिए सहयोग सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. हिंदू और सिख समुदाय लंबे समय से अफगानिस्तान रहते आए हैं, जो ऐतिहासिक रूप से इसकी आबादी का लगभग 1 फीसदी हैं. हालांकि इन समुदायों का पलायन 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक के शुरू में राजनीतिक उथल-पुथल और अफगानिस्तान में सोवियत आक्रमण के बीच शुरू हुआ.