जस्टिस वर्मा कैश कांड : महाभियोग प्रस्ताव पर 208 सांसदों के हस्ताक्षर

किसी न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा में 100, राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए

नई दिल्ली : कैश कांड को लेकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलेगा. इसके लिए सभी दलों के सांसदों के हस्ताक्षर लिए गए. छोटे-बड़े सभी दलों के ज्यादातर सांसद इस महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में हैं. करीब 208 सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपे गए नोटिस पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर समेत कुल 145 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं. वहीं, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपे गए नोटिस पर 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं.

निचले सदन में अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत नोटिस दिए गए हैं. किसी न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए. महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना या नहीं करना स्पीकर के अधिकार में है. प्रस्ताव स्वीकार होने की स्थिति में कमिटी बनाई जाएगी, जो एक से तीन महीने में रिपोर्ट देगी.

कमिटी में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के जज भी शामिल होते हैं. समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सौंपती है. समिति अगर आरोपों को सही पाती है, तो प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है. प्रत्येक सदन में प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है. दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास जाता है और उनकी मंजूरी के बाद न्यायाधीश को हटा दिया जाता है.

जस्टिस वर्मा के घर मिली थी करोड़ों की नकदी
दरअसल, 14 मार्च को होली की रात करीब 11.35 बजे जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग लग गई थी. वह दिल्ली से बाहर थे. उनके परिवार वालों ने आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को फोन लगाया. आग बुझाने बड़ी संख्या में पुलिस बल आई. इस दौरान वहां कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नोटों की गड्डी मिली थी. बताया जाता है कि एक पूरा कमरा नोटों से भरा मिला था.

जांच समिति की रिपोर्ट में पाया गया नकदी जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का था और उन्होंने इसका सोर्स नहीं बताया. इसके बाद जांच समिति ने महाभियोग की सिफारिश की, जिसे केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है. इसी कैश कांड के बाद जस्टिस वर्मा का दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किया गया था.

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