उत्तराखण्ड जिला पंचायत प्रशासकों का कार्यकाल भी समाप्त

राजभवन से अध्यादेश जारी होने में देरी, प्रदेश में अभी खाली रहेंगी ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतें!

देहरादून : प्रदेश में अभी ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतें खाली रहेंगी। जिनमें प्रशासकों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। इनकी पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज एक्ट में संशोधन को लेकर राजभवन से अध्यादेश जारी होने में हरिद्वार से जुड़ा तकनीकी पेच आड़े आ सकता है।

प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए पंचायती राज एक्ट में यह व्यवस्था है कि किसी वजह से पांच साल के भीतर चुनाव नहीं कराए जा सके तो सरकार छह महीने के लिए इनमें प्रशासक नियुक्त कर सकती है। इसी व्यवस्था के तहत राज्य में हरिद्वार को छोड़कर ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों में प्रशासकों की छह महीने के लिए नियुक्ति की गई,।

प्रदेश में हरिद्वार की 318 ग्राम पंचायतों को छोड़कर 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र और 341 जिला पंचायतें हैं। जिनमें ग्राम पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल चार दिन पहले खत्म हो चुका है। जबकि क्षेत्र पंचायतों में दो और जिला पंचायतों में एक जून को प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल खत्म हो गया है।

इसके बावजूद पंचायतों में चुनाव नहीं कराए जा सके हैं। जिससे अब पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति की तैयारी है। इसके लिए पंचायती राज एक्ट में संशोधन की तैयारी है। एक्ट में संशोधन के लिए राजभवन भेजे गए अध्यादेश को विधायी एक बार पहले हरिद्वार से जुड़े प्रकरण का हवाला देते हुए यह कहकर लौटा चुकी है कि एक ही तरह के अध्यादेश को फिर से राजभवन मंजूरी के लिए नहीं भेजा जा सकता।

हरिद्वार जिले में 2021 में त्रिस्तरीय पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद चुनाव न होने की वजह से छह महीने के लिए प्रशासकों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी जिले में चुनाव नहीं हुए। तब पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति की जा सके इसके लिए एक्ट में संशोधन के लिए अध्यादेश लाया गया। अध्यादेश लाने के कुछ समय बाद जिले में पंचायत चुनाव करा लिए जाने की वजह से इसे विधानसभा से पास नहीं किया गया। यदि यह विधानसभा से पास हो जाता तो कानून बन जाता।

पंचायती राज एक्ट के जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की संविधानपीठ ने यह व्यवस्था दी है कि कोई अध्यादेश यदि एक बार वापस आ गया हो तो फिर से उसे उसी रूप में नहीं लाया जाएगा। ऐसा किया जाना संविधान के साथ कपट होगा। यही वजह है कि विधायी राजभवन भेजे गए अध्यादेश को एक बार लौटा चुकी है। जिसे कुछ संशोधन के बाद राजभवन भेजा गया है।

 

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