जिंदगी तू कहां – कविता
बिखर गई मेरी तमन्ना
लुट गया मेरा जहां
मौत के काले साए
जिंदगी अब तू कहां
अब तो अश्कों ने सजा ली
उदास आंखों में महफिल
जब से मौत ने दी उन्हें
अपनी बाहों की पनाह
शहर से प्यास ही गए वो
उठा मेरी बदनसीबी का धुआं
चंद मजबूरीयों को कंधा देना
बन गया मेरा गुनाह
बेवाक रातों की खामोशी तोड़ती
चीखती सिसकती आहें
आजा फिर से साथ देने
है जिंदगी तन्हा
मौत के काले साए
जिंदगी अब तू कहां!
नीतू यंत मासी (बदायूं)