लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौतियाॅ, आसान नहीं इस बार की लड़ाई
2014 के बाद से लोगों के बीच पकड़ खोती जा रही कांग्रेस

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही 2024 के सबसे बड़े चुनावी समर का बिगुल फुंक चुका है। मैदान में इस बार मुकाबला एनडीए बनाम श्इंडियाश् होने वाला है। एक तरफ मोदी के नेतृत्व में गठबंधन 400 के पार के सपने देख रहा है तो वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन किसी भी हाल में जीत चाहता है। लेकिन इन सबके बीच देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस खुद को कहां देख रही है? भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने पार्टी को कोई खास फायदा नहीं पहुंचाया है। आलम यह है कि कांग्रेस अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इस लिहाज से कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है। 2024 का चुनाव कांग्रेस के भविष्य को भी तय करने वाला भी साबित होगा।
कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली जीत ने पार्टी को टॉनिक तो दिया लेकिन विधायकों के साथ छोड़ने और बाद के चुनावों में हार ने फिर उसे हाशिये में रख दिया। दशकों तक देश पर शासन करने और 2004-14 के बीच अपनी प्रधानता में लौटने के बाद, 2014 में 44 सीटों की संख्या और पांच साल बाद 52 सीटों की नगण्य वृद्धि के बाद, एक दशक से अस्तित्व की तलवार उसके सिर पर लटकी हुई है। आगे की चुनौती को समझते हुए, कांग्रेस पहले महागठबंधन श्इंडियाश् में शामिल होने के लिए सहमत हुई और बाद में अपनी कट्टर विरोधी रही आम आदमी पार्टी को भी गले लगाकर समझौता कर लिया।
कुछ महीने पहले तक, कांग्रेस पार्टी को बहुत उम्मीद थी। पिछले साल मई 2023 में कर्नाटक में कांग्रेस को बड़ी जीत मिलने के बाद, ऐसा लग रहा था कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी उन्हें विजय मिलेगी। उनकी सोच थी कि इन दो राज्यों में जीत से हिंदी पट्टी में बीजेपी को चुनौती देने का रास्ता साफ हो जाएगा। मोदी के आने के बाद से कांग्रेस को वहां से पूरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। साथ ही, उनकी सोच थी कि उनकी मजबूत स्थिति से उनके सहयोगी दलों को भी चुनाव जीतने में मदद मिलेगी। लेकिन, कांग्रेस की ये खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। बीजेपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में जीत हासिल कर ली। वहीं दूसरी तरफ, तेलंगाना में कांग्रेस की बड़ी जीत भी बीते 10 सालों से चली आ रही हार को कम नहीं कर सकी।
चुनावी बॉन्ड पर हाल के खुलासे के बाद भी कांग्रेस के लिए यह संभवतः जीतने की लड़ाई नहीं है, बल्कि अगले दिन लड़ने के लिए जीने की लड़ाई है। इसके लिए एक ऐसी संख्या की आवश्यकता होगी जो संसद और जनता में एक विपक्षी नेता के रूप में अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सके।