चीन ने नेपाल की जमीन पर शुरू किया कब्जा

यहां की इस प्रमुख नदी पर बना लिया बांध, इलाके में बाढ़ का खतरा

नई दिल्ली(रिपोर्ट): केंद्रीय खुफिया एजेंसियों को मिले इनपुट के आधार पर पता चला है कि चीन ने एक बार फिर नेपाल-टीएआर (चीन) पर कोसी प्रांत के संकुवासभा जिले के उत्तर पूर्व में स्थित गांव किमाथंका में अतिक्रमण किया है। जानकारी के मुताबिक नेपाली जमीन पर बहने वाली अरुण नदी के किनारे तकरीबन एक किलोमीटर लंबा तटबंध का निर्माण किया गया है।

चीन पड़ोसी देशों की संप्रभुता के साथ लगातार छेड़खानी कर रहा है। इस कड़ी में चीन ने इस बार अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल की एक हस्से में अतिक्रमण करना शुरू कर दिया। यह हिस्सा नेपाल चीन के बॉर्डर पर कोसी राज्य के कीमाथंका गांव पर एक तटबंध का निर्माण करके किया है।
केंद्रीय खुफिया एजेंसियों को मिले इनपुट के आधार पर पता चला है कि चीन ने एक बार फिर नेपाल-टीएआर (चीन) पर कोसी प्रांत के संकुवासभा जिले के उत्तर पूर्व में स्थित गांव किमाथंका में अतिक्रमण किया है।

जानकारी के मुताबिक नेपाली जमीन पर बहने वाली अरुण नदी के किनारे तकरीबन एक किलोमीटर लंबा तटबंध का निर्माण किया गया है। इस निर्माण से यहां बहने वाली अरुण नदी के प्रवाह को न सिर्फ प्राकृतिक रूप से चीन ने मोड़ दिया है, बल्कि इस इस अतिक्रमण से अब अगले मानसून में नेपाल के इलाके में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है।

इस बात के प्रमाण मिले हैं कि चीन लगातार नेपाल के अलग-अलग हिस्सों में अतिक्रमण कर रहा है।
खुफिया एजेंसियों को मिले इनपुट के मुताबिक इस निर्माण से नेपाल के हिस्से में कुछ दिन पहले तकरीबन नौ हेक्टेयर से ज्यादा की नेपाली जमीन का नुकसान हो गया। इसके अलावा इस निर्माण से नेपाली इलाकों में बरसात के दौरान बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। हालांकि केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के मुताबिक न तो चीन और न ही नेपाल इसे स्वीकार कर रहा है।

चीन ने नेपाल के हिस्से में आने वाली जमीनों पर अतिक्रमण ही नहीं किया बल्कि नेपाल की कई आस्था वाली चीजों के नाम तक बदल डाले।
विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि चीन की हमेशा से एक रणनीति रही है कि वह अपने पड़ोसी मुल्कों की संप्रभुता के साथ ऐसे ही खिलवाड़ कर माहौल बिगाड़ रहा है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में चीनी मामलों के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह कहते हैं कि कई मामलों में नेपाल, चीन का खुलकर विरोध नहीं कर पता है। इसके कई कारण हैं। इसमें चीन की ओर से नेपाल में किए गए निवेश के अलावा उसे मिलने वाली मदद बड़ा पहलू है। डॉ. अभिषेक कहते हैं कि यह पहला मौका नहीं है जब चीन की ओर से नेपाल के भीतर अतिक्रमण सूचना सामने आई हो। हालांकि चीन और नेपाल दोनों देश इसे लेकर इंकार करते हैं, लेकिन सच्चाई इन मामलों से जमीन पर बिलकुल अलग होती है।

रिटायर्ड ब्रिगेडियर दविंदर सिंह चहल कहते हैं कि चीन जिस तरह हमारे देश के महत्वपूर्ण राज्य अरुणाचल प्रदेश में माहौल बिगड़ने के लिए नाम बदलता रहता है, ठीक उसी तरह नेपाल में भी दखल देता है। वह कहते हैं कि 2019 में चीन के एक मीडिया हाउस ने नेपाल के एक महत्वपूर्ण माउंट सागरमाथा का नाम बदलकर माउंट कुमोलांगमा कर दिया था। इसके अलावा यहां तक दावा कर दिया गया था कि यह नेपाल का नहीं बल्कि चीन का हिस्सा है।
विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी मीडिया की रिपोर्ट का नेपाल में जबरदस्त विरोध हुआ। ब्रिगेडियर चहल कहते हैं कि ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, जिसमें चीन नेपाल में अतिक्रमण की कोशिश भी करता रहा है और उनकी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ भी करता रहा है।

विदेशी मामलों की जानकार और साउथ एशिया और चाइना स्ट्रैटेजिक अफेयर्स के प्रोफेसर जेपी चक्रवर्ती कहते हैं कि चीन की ओर से 2020 में नेपाल के 36 हेक्टेयर क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण की रिपोर्ट सामने आई थी। चक्रवर्ती कहते हैं कि जिस पत्रकार ने उत्तरी सीमा पर नेपाली जमीन पर चीनी आक्रमण की खबर दी थी, उसने जुलाई में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। इसे लेकर नेपाल के भीतर कई तरह की चर्चाएं शुरू हुई थीं। वह कहते हैं कि पिछले साल ही नेपाल में गंडकी राज्य के मस्तांग जिले में सड़क निर्माण की भी जानकारियां सामने आई थीं। इसके अलावा कई गांवों में तारबंदी की भी सूचनाएं नेपाल में लगातार सामने आती रहती हैं। केंद्रीय खुफिया एजेंसी से जुड़े सूत्रों के मताबिक नेपाल के भीतर चीन लगातार हस्तक्षेप कर रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि तमाम तरह के दबाव के चलते वह इसका खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा है।

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