रमजान में भी जारी रहेगी गाजा में तबाही
हमास नहीं मान रहा यूएनएससी का प्रस्ताव

संयुक्तराष्ट्र संघः गाजा पर इजराइल के हमला शुरू करने के साढ़े पांच महीने बाद, 25 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने ‘फौरन संघर्ष विराम’ और हमास द्वारा सभी बंधकों की रिहाई का आह्वान किया। इस बीच 32,000 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, अन्य 74,000 जख्मी हुए हैं, गाजा की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी विस्थापित हो चुकी है और उनमें से लगभग सभी एक भयावह भुखमरी के संकट में धकेल दिये गये हैं।
गाजा में फौरन संघर्ष विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र में इससे पहले आये हर प्रस्ताव पर वीटो लगाने वाला अमेरिका इस बार मतदान से अलग रहा।
इस युद्ध को लेकर बाइडेन प्रशासन की नीति में बदलाव का इशारा करता है। ब्रिटेन समेत यूएनएससी के सभी दूसरे सदस्यों ने, जिन्होंने हाल तक संघर्ष विराम का समर्थन करने के आह्वान का विरोध किया था, प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इजराइल ने गुस्से से भरी प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दो करीबी कैबिनेट सहयोगियों की वाशिंगटन की पूर्व-निर्धारित यात्रा रद्द कर दी और संघर्ष विराम के लिए बंधकों की रिहाई की शर्त नहीं लगाने वाले, चीन और रूस द्वारा समर्थित, प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की।
लेकिन इस गुस्से और भड़ास के पीछे इजराइल की कमजोरी छिपी है। इजराइली नेताओं ने हाल के सप्ताहों में बार-बार कहा कि रफा पर जल्द आक्रमण होने वाला है। इस सबसे दक्षिणी कस्बे में लगभग 14 लाख फिलिस्तीनी ठुंसे हुए हैं। यूएनएससी के 14 सदस्यों द्वारा फौरन संघर्ष विराम का आह्वान किये जाने के बाद, इजराइल के लिए रफा पर हमला करना कतई उचित नहीं होगा। यह हमला एक और खून-खराबे में बदल सकता है।
ताजा युद्ध 7 अक्टूबर को हमास के सीमा-पार हमले के बाद भड़का जिसमें कम-से-कम 1200 इजराइली मारे गये थे। उस दिन दुनिया की हमदर्दी और एकजुटता इजराइल के साथ थी। लेकिन इसके बाद कुछ महीनों में इजराइल ने हमास की करतूत के लिए गाजा की पूरी आबादी को दंडित करने के लिए जो किया, उसने अंतरराष्ट्रीय जनमत उसके खिलाफ कर दिया।
अगर इजराइल इस स्थिति का एक वस्तुनिष्ठ आकलन करता है, तो उसे यूएनएससी के प्रस्ताव का तुरंत पालन करना चाहिए और संघर्ष विराम घोषित करना चाहिए। पिछले 7 अक्टूबर का हमला एक बड़ी खुफिया और सुरक्षा चूक थी जिसके लिए नेतन्याहू को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। ऐसा करने के बजाय, वह पूरी ताकत से जंग में कूद पड़े, वह भी हासिल-करने-योग्य लक्ष्य तय किये बिना।
महीनों लंबी लड़ाई के बाद, इजराइल ने अधिकांश गाजा को मलबे में बदल दिया है, लेकिन न तो हमास खत्म हुआ न ही बंधक रिहा हुए। लंबे युद्ध ने नेतन्याहू कैबिनेट के भीतर दरार पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री अत्यधिक अलोकप्रिय हैं और उनके गठबंधन सहयोगी एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। इस युद्ध ने इजराइल का अलगाव बढ़ा दिया है। अमेरिका समेत उसके करीबी सहयोगियों के साथ भी उसके संबंधों में तनाव बढ़ रहा है। अगर इजराइल यह युद्ध जारी रखता है और जल्द ही कोई स्पष्ट अंत नहीं होता है, तो इससे उसकी वो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां और बढ़ेंगी जिनका वह सामना कर रहा है।
इसके अलावा, अरक्षित, प्रहार से पस्त, घेराबंदी में फंसे, बमबारी से तबाह गाजा में और भी जानें जायेंगी। नेतन्याहू के सामने दो विकल्प हैं। वह यूएनएससी के संदेश को गंभीरता से लें, जंग रोकें, गाजा में फौरी मानवीय सहायता की इजाजत दें और सभी बंधकों की रिहाई व गाजा से अपनी सेनाओं की वापसी के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों के जरिए हमास से बातचीत जारी रखें। या, वह अपने देश को स्थायी युद्ध के अंधकार में ले जाना जारी रखें।