बेटी से दुष्कर्म के दोषी पिता को आजीवन कारावास

पीड़िता ने 17 साल की उम्र में दिया था बच्चे को जन्म

नई दिल्ली: देश की राजधानी द‍िल्‍ली में एक बड़ा ही शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है. जहां एक कलयुगी प‍िता ने पत्‍नी की मौत के बाद से अपनी 11 साल की बेटी के साथ दुष्‍कर्म क‍िया. इस मामले में द‍िल्‍ली की एक अदालत ने दोषी प‍िता को आजीवन कैद की सुजा सुनाई है. अदालत ने पीड़‍िता को राहत और पुनर्वास के ल‍िए 12 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश भी द‍िया.

पीड़ित बच्ची को उसके भविष्य के मद्देनजर 12 लाख रुपये का मुआवजा देने का फैसला सुनाया गया है. कोर्ट की तरफ से इस संबंध में आदेश 27 अप्रैल का सुनाया गया. कलयुगी प‍िता को पॉक्‍सो एक्‍ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया था. व‍िशेष न्‍यायाधीश अनु अग्रवाल ने दोषी प‍िता को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने आदेश में यह भी साफ कर द‍िया कि उम्र कैद का मतलब ‘दोषी की बची हुई प्राकृतिक लाइफ’ से है.

अदालत ने कहा, अपराध इतना शैतानी है कि यह कम करने वाली परिस्थितियों पर भारी पड़ा। यह भी देखा गया कि आजीवन कारावास की सजा दोषी को नष्ट किए बिना सामान्य निवारक के रूप में काम करने के अलावा न्याय और समाज के हित में भी काम करेगी। पीड़िता ने 17 साल की उम्र में बच्चे को जन्म दिया था।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बबीता पुनिया उस व्यक्ति के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रही थीं, जिसे पहले अदालत ने दुष्कर्म और बच्चों की सुरक्षा की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा, अपराध की शैतानी प्रकृति और यह तथ्य कि पीड़िता दोषी की बेटी थी और उसकी देखभाल और सुरक्षा में थी, दोषी की व्यक्तिगत परिस्थितियों से अधिक महत्वपूर्ण है।

अदालत ने 22 अप्रैल के फैसले में कहा, आजीवन सजा न्याय के साथ-साथ समाज के हित में भी काम करेगी। इसके अलावा यह दोषी को नष्ट नहीं करेगी, हालांकि यह एक सामान्य निवारक के रूप में काम करेगी। अदालत ने कहा, हालांकि गंभीर कारकों में पीड़िता का मासूम और असहाय बच्चा होना शामिल है, जिसके साथ बार-बार दुष्कर्म किया गया।

बच्‍चे को अपने माता प‍िता से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की उम्मीद रहती है. लेक‍िन जब एक घर के भीतर ही बच्‍चा यौन उत्पीड़न का श‍िकार होता है तो उसके पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं होती है. कोर्ट कार्यवाही के दौरान अत‍िर‍िक्‍त सरकारी अभियोजक अरुण केवी ने दोषी के ल‍िए अध‍िकतम सजा की गुहार लगाई थी. कोर्ट ने अपने आदेश के दौरान यह भी कहा क‍ि अगर दर‍िंदा बच्‍चे का जैव‍िक प‍िता था तो यह व‍िश्‍वास के साथ व‍िश्‍वासघात और सोशल वैल्‍यू की हानि के समान है.

अदालत ने पीड़िता को दिया मुआवजा
अदालत ने कहा कि यदि “दरिंदा” बच्चे का जैविक पिता था तो यह विश्वास के साथ विश्वासघात और सामाजिक मूल्यों की हानि के हानि के समान है. इसमें कहा गया है कि इस तरह के अपराध ने बच्चे पर लंबे समय तक चलने वाला भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ा, जिसने ऐसे अदृश्य घावों के साथ, सामान्य रूप से परिवार और दोस्तों और विशेष रूप से समाज में विश्वास खो दिया. पुनर्वास के लिए कुल 12 लाख रुपये का मुआवजा दिया है.

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