नितिन गडकरी ने बताई ‘इलक्ट्रोल बाॅन्ड’ की सच्चाई
कहा-केंद्र ने चुनावी बॉण्ड योजना ‘अच्छे इरादे’ से शुरू की थी

\नई दिल्लीः हर राजनीतिक दल को करोड़ों-अरबों का चंदा मिला. इसके बावजूद किस पार्टी को ज्यादा और किसको कम मिला इस पर घमासान मचा है. हर पार्टी खुद की चादर और अपने नेताओं की कॉलर को दूसरों से ज्यादा सफेद बता रही है. इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठे तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. चुनाव आयोग ने चंदे की जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाली तो कहा जा रहा है कि अभी बहुत कुछ ऐसा है जो सामने आना बाकी है।
चुनावी बॉन्ड पर बड़ा बयान
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि बिना फंड के राजनीतिक दल को चलाना संभव नहीं है और केंद्र ने चुनावी बॉण्ड योजना ‘अच्छे इरादे’ से शुरू की थी. केंद्र सरकार द्वारा 2017 में लायी इस योजना को उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर और कोई निर्देश देता है तो सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठने और इस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है.
हर राजनीतिक दल को करोड़ों-अरबों का चंदा मिला. इसके बावजूद किस पार्टी को ज्यादा और किसको कम मिला इस पर घमासान मचा है. हर पार्टी खुद की चादर और अपने नेताओं की कॉलर को दूसरों से ज्यादा सफेद बता रही है. इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठे तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. चुनाव आयोग ने चंदे की जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाली तो कहा जा रहा है कि अभी बहुत कुछ ऐसा है जो सामने आना बाकी है।
आम आदमी की जिंदगी हो या नेताओं की सियासत बटुए में हो या बैंक में या फिर घर में लेकिन पैसा होना बहुत जरूरी है. कहा भी जाता है कि – ‘पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा की कसम, खुदा से कम भी नहीं’. चुनावी सीजन में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जमकर सियासी हंगामा हर ओर सुनाई दे रहा है।
बहुत से लोगों का मानना है कि सम्मान से जिंदगी जीने के लिए पैसा होना बहुत जरूरी है. धन की देवी लक्ष्मी जी की आरती में भी लिखा है- ‘सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता… मैया जय लक्ष्मी माता’. अब इलेक्शन का सीजन है तो चुनावी फंडिंग से जुड़ी चर्चा लाजिमी हो जाती है. बिना पैसे के तो दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती, ऐसे में चुनाव लड़ने के लिए कितने रुपयों की जरूरत पड़ती होगी।
एक बार एक नेता ने कहा था कि पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा की कसम, खुदा से कम भी नहींश्३ इसी तरह जब कुछ दिन पहले कांग्रेस के खाते सील हुए और इनकम टैक्स ने उस पर करोड़ों का जुर्माना लगाया तो राहुल गांधी ने कहा, श्चुनाव सर पर है और चुनाव लड़ने के लिए फंड नहीं है।
गडकरी ने चुनावी बॉण्ड के बारे में एक सवाल पर कहा, ‘जब अरुण जेटली केंद्रीय वित्त मंत्री थे तो मैं चुनावी बॉण्ड से जुड़ी बातचीत का हिस्सा था. कोई भी पार्टी संसाधनों के बगैर नहीं चल सकती. कुछ देशों में सरकारें राजनीतिक दलों को चंदा देती है. भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए हमने राजनीतिक दलों के वित्त पोषण की इस व्यवस्था को चुना.’
उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड लाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दलों को सीधे चंदा मिले लेकिन दानदाताओं के नामों का खुलासा न किया जाए क्योंकि ‘अगर सत्तारूढ़ दल बदलता है तो समस्याएं पैदा होंगी.’
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने ये भी कहा, श्जैसे कि किसी मीडिया हाउस को एक कार्यक्रम के आयोजन के लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए प्रायोजक की जरूरत होती है, उसी तरह राजनीतिक दलों को भी चुनाव लड़ने और अन्य जरूरी कामों के लिए फंड की जरूरत होती है.
गडकरी ने कहा, ‘आपको जमीनी हकीकत देखने की जरूरत है. पार्टियां चुनावी कैसे लड़ेंगी? हम पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉण्ड की व्यवस्था लेकर आए थे. जब हम चुनावी बॉण्ड लाए थे तो हमारा इरादा अच्छा था. अगर सर्वोच्च अदालत को इसमें कमियां नजर आती हैं और वह हमें इसमें सुधार लाने के लिए कहता है तो सभी दल एक साथ बैठेंगे और सर्वसम्मति से इस पर विचार-विमर्श करेंगे.’