अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत आएंगे रूसी युद्धपोत
भारत-अमेरिकी दोस्ती में कोई दरार नहीं, भारत को मिलने वाला है 'ब्रह्मास्त्र'

नई दिल्ली: रूस से जल्द ही भारत को ‘ब्रह्मास्त्र’ मिलने वाला है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस में बने वॉरशिप भारतीय नौसेना में शामिल होने के लिए तैयार हैं। इसी के साथ ये स्पष्ट हो गया दोनों देशों की दोस्ती में कोई दरार नहीं आई है। हथियारों को लेकर भारत काफी पहले से रूस पर निर्भर रहा है।
अमेरिका ने भारत पर रूस के साथ उसके व्यवहार के लिए दंडित करने से काफी हद तक परहेज किया, जिसमें एक एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम के लिए पेनल्टी पर रोक लगाना भी शामिल है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो चीन के साथ तेज प्रतिस्पर्धा के बीच भारत को लुभा रहा है। अमेरिका और फ्रांस से अधिक हथियार खरीदने और देश में सैन्य हार्डवेयर बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक कार्यक्रम के बावजूद, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, रूस भारत के सैन्य हार्डवेयर का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
ये भारत के 36 फीसदी हथियार आयात का हिस्सा है। वैश्विक हथियार व्यापार का अध्ययन करने वाले एक स्वतंत्र थिंक टैंक SIPRI ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि यह छह दशकों में पहली बार है कि रूस ने भारत के हथियार आयात का आधा से भी कम हिस्सा बनाया है।
ये दो वॉरशिप उस चार-जहाज सौदे का हिस्सा हैं जिस पर भारत ने साल 2018 में रूस के साथ हस्ताक्षर किए थे। इनमें दो जहाज जल्द भारत को मिलने वाले हैं, वहीं दो जहाज रूस के सहयोग से भारत में बनाए जा रहे हैं। हालांकि, ये वॉरशिप यूक्रेन युद्ध के चलते डिलीवरी डेट से दो साल बाद मिलने जा रहे हैं।
सितंबर तक आ जाएगा पहला वॉरशिप
वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, भारत अगले कुछ महीनों में रूस के निर्मित दो युद्धपोतों की डिलीवरी लेगा। दरअसल, दोनों देश अमेरिकी प्रतिबंधों के इर्द-गिर्द काम कर रहे हैं, जिससे रूसी हथियार प्रणालियों के भुगतान में मुश्किलें पैदा हो रही हैं। एक जहाज सितंबर में भारतीय नौसेना को सौंपे जाने की संभावना है, जबकि दूसरा जहाज अगले साल की शुरुआत में सौंपा जाएगा।
अधिकारियों ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध के कारण जहाजों की डिलीवरी निर्धारित समय से दो साल पीछे है। दो वॉरशिप उन चार-जहाज सौदे का हिस्सा हैं जिस पर भारत ने 2018 में रूस के साथ हस्ताक्षर किए थे। स्टील्थ फीचर वाले गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट यूक्रेन में बने हैं, इसमें गैस टर्बाइन का इस्तेमाल किया गया है।
यूक्रेन युद्ध के चलते युद्धपोत में हुई देरी
वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि रूस की ओर से क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद 2014 में यूक्रेन-रूस व्यापार बंद हो गया। फिर भारत ने तीसरे देश का इस्तेमाल करके टर्बाइनों की खरीद की। यूक्रेन के साथ युद्ध की वजह से रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने एक साल से अधिक समय तक भारत में हथियारों की डिलीवरी रोक दी थी। ऐसा इसलिए क्योंकि देशों को एक ऐसा भुगतान तंत्र खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ा जो अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन न करे। लोगों ने कहा कि भारत और रूस, जो रणनीतिक साझेदार भी हैं। भुगतान के मुद्दे पर काम करने में सक्षम रहे। हालांकि, उन्होंने डिटेल्स का खुलासा नहीं किया। भारत के विदेश मंत्रालय, भारतीय नौसेना और रक्षा मंत्रालय ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
भारत-रूस के हमेशा रहे रणनीतिक साझीदार
नई दिल्ली हथियारों के लिए मास्को को भारतीय रुपये में भुगतान कर रहा है। वहीं कच्चे तेल के भुगतान को लेकर यूएई दिरहम और अमेरिकी डॉलर जैसी मिक्स करेंसी का इस्तेमाल करता है। भारत रूस के समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। यह तंत्र कुछ समय के लिए मुश्किल में पड़ गया था क्योंकि भारत में अरबों डॉलर का भुगतान जमा हो गया था। लोगों ने कहा कि नई दिल्ली ने बीजिंग के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए चीनी युआन में भुगतान करने से इनकार कर दिया था।