आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व में दो युवा चेहरों को मिली जगह

अतुल लिमये और आलोक कुमार बने सह सरकार्यवाह

नई दिल्लीः 2024 लोकसभा चुनावों से पहले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने शीर्ष नेतृत्व में दो नए चेहरों को शामिल किया है। अतुल लिमये और आलोक कुमार को संघ में सह सरकार्यवाह (संयुक्त महासचिव) के तौर पर शामिल किया गया है। संघ की टॉप लीडरशिप देखें तो सह सरकार्यवाह का पद नंबर 3 पर आता है। इन दो युवा चेहरों के आने से आरएसएस में संयुक्त महासचिवों की कुल संख्या छह हो गई है। इनकी नियुक्तियां महाराष्ट्र और झारखंड पर खास फोकस के तहत की गई है। इन दो नए चेहरों के जरिए आरएसएस उन दो राज्यों को टारगेट करना चाहती है जहां बीजेपी अपनी सीटों की बढ़ाने की कोशिश में जुटी है।

अगले साल आरएसएस का शताब्दी वर्ष
अगले साल 27 सितंबर को आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष मनाएगी, जब इसकी स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे। शताब्दी वर्ष से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश और समाज में बड़े बदलाव को लेकर खास प्लानिंग की है। उनका पूरा फोकस समाज में बड़ा परिवर्तन लाने का है।

शताब्दी वर्ष में संघ ने देश में एक लाख शाखाएं बनाने का टारगेट रखा है। इसके लिए आरएसएस ने युवाओं को खास तौर पर फोकस किया है। यही वजह है कि संघ ने सह सरकार्यवाह के तौर पर दो युवा चेहरों को टॉप-3 में जोड़ा गया है। दत्तात्रेय होसबाले बने संघ के नंबर 2, आरएसएस कितने पद और कैसे होता है.

आलोक कुमार और अतुल लिमये की उम्र अभी 50 साल के आस-पास है। वो संघ में सह सरकार्यवाह के तौर पर सबसे कम उम्र के सदस्य हैं। आरएसएस ने अतुल लिमये और आलोक कुमार को सह सरकार्यवाह के तौर पर जगह दी है।

बिल्कुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्टाइल में आरएसएस ने संयुक्त महासचिव के अहम पद पर युवा चेहरों पर भरोसा जताया। जिस तरह से प्रधानमंत्री युवाओं पर खास फोकस करते हैं। चुनावी रण में युवा चेहरों को उतारने और अपने संबोधनों के जरिए नए वोटर्स को कनेक्ट करने की पूरी कोशिश करते हैं। कुछ वैसी रणनीति पर आरएसएस ने भी तैयार की है।

यंग ब्लड को बड़ी जिम्मेदारी के पीछे ये है प्लान
आरएसएस की कोशिश यही है कि कैसे नए-नए लोगों को साथ लाया जाए। युवाओं के बीच कनेक्ट और बढ़े। इसके लिए टॉप लीडरशिप में अपेक्षाकृत युवा प्रतिनिधित्व दिया जाना संघ के भारत की नई पीढ़ी को और अधिक प्रभावित करने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है।

आरएसएस की ओर से जानकारी दी गई कि कि देशभर के 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं होती हैं। प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं। शाखाओं की संख्या में साल-दर-साल 4,466 की वृद्धि देखी गई है। इन शाखाओं में 60 फीसदी छात्र और 40 फीसदी वर्किंग कार्यकर्ता शामिल हैं। इनमें चालीस से अधिक आयु वर्ग के स्वयंसेवकों की शाखाएं 11 फीसदी हैं।

शताब्दी वर्ष में संघ ने देश में एक लाख शाखाएं बनाने का टारगेट रखा है। इसी वजह से सह सरकार्यवाह यानी संयुक्त महासचिव के तौर पर दो युवाओं को शामिल किया गया। आलोक कुमार और अतुल लिमये के जरिए संघ झारखंड और महाराष्ट्र पर फोकस बढ़ाने जा रहा, ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों ही राज्यों में बीजेपी के और मजबूत और ज्यादा सीटें आने की उम्मीद लग रही।

कौन हैं अतुल लिमये, जो बने सह सरकार्यवाह
50 साल की उम्र में आलोक कुमार और अतुल लिमये सह सरकार्यवाह समूह में सबसे कम उम्र के सदस्य हैं। ये आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और महासचिव दत्तात्रेय होसबले के बाद संघ के पदानुक्रम में नंबर 3 पर हैं।
अतुल लिमये महाराष्ट्र से हैं और पश्चिमी क्षेत्र में संघ के नामी ‘क्षेत्र प्रचारक’ थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने महाराष्ट्र में आरएसएस के काम और विस्तार की देखरेख की थी। इसमें गुजरात, नागपुर के अलावा गोव में आरएसएस मुख्यालय भी शामिल है। उन्होंने महाराष्ट्र और गुजरात में काफी वर्ष बिताए हैं। सह सरकार्यवाह के रूप में उनकी पदोन्नति से इन दो महत्वपूर्ण राज्यों में संगठन मजबूत होगा।

सह सरकार्यवाह बने आलोक कुमार के बारे में जानिए
आलोक कुमार संयुक्त राष्ट्रीय प्रचार प्रभारी रहे हैं। संघ के अंदरूनी सूत्रों ने स्वीकार किया कि वह संयुक्त महासचिव पद के लिए एक सरप्राइज पिक रहे। उनको सह सरकार्यवाह के तौर पर लाना शीर्ष पदाधिकारियों में युवा ऊर्जा भरने के संघ के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा। वह वर्तमान में रांची, झारखंड में रहते हैं। ये एक ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी अपनी पहुंच को तेजी से विस्तार करने की कवायद में जुटी है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले आलोक कुमार 1988 में नैनीताल में जिला प्रचारक के रूप में संघ में शामिल हुए। मेरठ के प्रांत प्रचारक बनने से पहले उन्होंने हरियाणा में विभाग प्रमुख के रूप में काम किया। 2014 में, उन्हें पश्चिमी यूपी के क्षेत्र प्रचारक के रूप में पदोन्नत किया गया, उनका अधिकार क्षेत्र उत्तराखंड तक बढ़ा दिया गया। सूत्रों ने कहा कि आलोक कुमार नेसंघ के प्रभाव को गहरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। माना जाता है कि उन्होंने पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।

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