भारत की प्रगति की राह में रोड़ा बन रहे हैं ‘निहित स्वार्थी समूह’: सुप्रीम कोर्ट

ईवीएम पर 8 बार परीक्षण किया गया, ये हर बार बेदाग निकली

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के बीच ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग पर फिर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 70 सालों से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग की सराहना की और इस बात पर दुख जताया कि ‘निहित स्वार्थी समूह’ देश की उपलब्धियों को कमजोर कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि ईवीएम पर 8 बार परीक्षण किया गया और ये हर बार बेदाग निकली, इसके बाद भी एडीआर अपना एजेंडा चलाता रहा। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर पर बरसते हुए कहा सिस्टम के किसी भी पहलू पर आंख मूंदकर भरोसा न करना बेवजह संदेह पैदा कर सकता है और प्रगति में बाधा डाल सकता है।

‘ईवीएम का प्रदर्शन हमेशा रहा बेदाग’
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि ईवीएम का प्रदर्शन बेदाग रहा है और इसे लागू किए जाने के बाद से 118 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने अपने वोट डाले हैं और 4 करोड़ से ज्यादा VVPAT पर्चियों का ईवीएम के साथ मिलान किया गया। इस पूरे प्रोसेस में केवल एक ही विसंगति का मामला सामने आया है।

जस्टिस दत्ता ने अपने अलग फैसले में कहा, ‘भारत में चुनाव कराना एक बड़ा टास्क है। इसके सामने कई चुनौतियां होती हैं, जो दुनियाभर में कहीं और नहीं देखी जाती। भारत में 140 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं और 2024 के आम चुनावों के लिए 97 करोड़ पात्र मतदाता हैं, जो विश्व की आबादी का 10% से अधिक है।

‘राष्ट्र की उपलब्धियों को कम करने की कोशिश कर रहे कुछ ग्रुप’
जस्टिस दत्ता ने कहा कि गौर करने वाली बात ये है कि हाल के वर्षों में कुछ निहित स्वार्थी समूह द्वारा एक प्रवृत्ति तेजी से विकसित हो रही है, जो राष्ट्र की उपलब्धियों को कम करने की कोशिश कर रही है। ऐसा लगता है कि हर संभव मोर्चे पर इस महान राष्ट्र की प्रगति को बदनाम करने, कम करने और कमजोर करने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है। इस तरह के किसी भी प्रयास को शुरुआत में ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। कोई भी संवैधानिक अदालत तो बिल्कुल भी इस तरह के प्रयास को तब तक सफल नहीं होने देगी, जब तक कि मामले में उसकी (अदालत की) बात मानी जाती है।

एडीआर पर बरसा सुप्रीम कोर्ट
एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) जो कि याचिकाकर्ताओं में से एक है की ‘पेपर बैलेट’ प्रणाली की वापसी की मांग करने की मंशा पर संदेह व्यक्त किया। उन्होंने कहा, चुनाव आयोग ने पिछले 70 सालों से निष्पक्ष चुनाव कराए हैं, जिस पर गर्व होना चाहिए। इसका श्रेय मुख्य रूप से चुनाव आयोग और जनता द्वारा उस पर जताए गए भरोसे को दिया जा सकता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में इस तरह के संदेह करना ठीक नहीं है, यह अदालत चल रहे आम चुनावों की पूरी प्रक्रिया को सवालों के घेरे में लाने और याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं और अटकलों के आधार पर उलटफेर करने की अनुमति नहीं दे सकती।

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