एड्स की गलत रिपोर्ट पर सेना से बर्खास्त सैनिक की 23 साल की कानूनी लड़ाई
अब सुप्रीमकोर्ट से मिली जीत, 23 साल बाद मिलेंगे 50 लाख

नई दिल्लीः सत्यानंद 1993 में भारतीय सेना में भर्ती हुआ था. उसे 27 साल की कम उम्र में इस आधार पर छुट्टी दे दी गई थी कि उसे आगे की सेवा के लिए मेडिकल रूप से अयोग्य पाया गया।
एड्स की गलत पहचान के आधार पर सेना से बर्खास्त किए जाने के खिलाफ एक सैनिक की 23 साल की कानूनी लड़ाई आखिरकार अंजाम तक पहुंच गई. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सत्यानंद सिंह को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया क्योंकि दो दशकों से अधिक समय के बाद भी उन्हें बहाल नहीं किया जा सका.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने याचिकाकर्ता के प्रति ‘उदासीन रवैये’ और अपने डॉक्टरों की झूठी मेडिकल रिपोर्ट को छिपाने की कोशिश के लिए सेना की खिंचाई की.
क्या है मामला?
रिपोर्ट के मुताबिक सत्यानंद 1993 में भारतीय सेना में भर्ती हुआ था और आठ साल से अधिक समय तक सेवा करने के बाद उसे 27 साल की कम उम्र में इस आधार पर छुट्टी दे दी गई थी कि उसे आगे की सेवा के लिए मेडिकल रूप से अयोग्य पाया गया.
सत्यानंद ने न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक सभी कानूनी मंचों का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने तर्क दिया कि डायग्नोसिस में त्रुटि हुई थी और बिना किसी इलाज के इतने वर्षों के बाद भी वह स्वस्थ थे।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलील स्वीकार कर ली.अदालत ने निर्देश दिया कि पूर्व सैन्यकर्मी सत्यानंद सिंह कानून के अनुसार पेंशन के हकदार होंगे जैसे कि उन्होंने सेवा जारी रखी हो। पीठ ने एचआईवी पॉजिटिव लोगों के प्रति प्रचलित सामाजिक कलंक और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण पर भी चिंता व्यक्त की।