क्या भारत के परमाणु बम पाकिस्तान से ज्यादा ताकतवर हैं
48 घंटे में सेना करेगी दुश्मन को पस्त, नहीं मिलेगा मौका- डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक अफेयर्स एनालिस्ट ले. कर्नल (रि.)

नई दिल्लीः हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में कहा कि आज पाकिस्तान की हालत ऐसी है कि वे बम (परमाणु) भी नहीं संभाल सकते। वे अब इसे बेचने के लिए निकले हैं, ताकि वे इसे खरीदने के लिए कोई ढूंढ सकें। लेकिन लोग जानते हैं कि यह अच्छी गुणवत्ता का नहीं है, इसलिए यह बिक नहीं रहा है।
ओडिशा के फूलबनी में एक रैली में पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सराहना करते हुए कहा, 26 साल पहले आज ही के दिन (11 मई) पोखरण में परमाणु परीक्षण किया गया था। तब पूरी दुनिया भर के भारतीयों ने इस पर गर्व किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पाकिस्तान की परमाणु क्षमता का अनुमान लगाकर देश में डर पैदा कर रही है। आज डिफेंस एक्सपर्ट्स से जानेंगे कि परमाणु परीक्षण कैसे होते हैं और किसी परमाणु बम की ताकत का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है।
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक अफेयर्स एनालिस्ट ले. कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के मुताबिक, परमाणु हथियार की क्षमता को नापने का पैमाना है, किलोटन। कौन सा बम कितने किलोटन का है, इसी से उस परमाणु हथियार की क्षमता का अंदाजा होता है। जितना ज्यादा किलोटन, उतना ही ज्यादा विनाशक परमाणु बम। आजकल दुनिया भर में 125 से 150 किलोटन तक परमाणु हथियार बनाए बनाए जा रहे हैं। भारत के पास भी इसी कैटेगरी के हथियार हैं।
जबकि पाकिस्तान के पास इस क्षमता के परमाणु हथियार कम हैं। 2009 के बाद से उसने 3 किलोटन वाले परमाणु हथियार ज्यादा बनाए हैं। हाल ही में वैश्विक संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत के पास 164 परमाणु हथियार हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 170 एटमी हथियार हैं।
भारत की कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन से पाकिस्तान के माथे पर टेंशन
जेएस सोढ़ी के अनुसार, भारत ने 2009 में कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन का ऐलान किया। जवाब में पाकिस्तान ने टैक्टिकल परमाणु हथियार बनाने शुरू किए। ये परमाणु बम छोटे-छोटे हैं, जो 3 किलोटन वजन के हैं। इसका मकसद यह है कि अगर भारत अचानक पाकिस्तान पर हमला करता है तो जवाब में ऐसे टैक्टिकल एटमी बम बनाए जाएंगे जो सीमा पर भारतीय सैनिकों की टुकड़ी पर गिराए जाएंगे। दरअसल, टैक्टिकल एटमी हथियारों का मकसद यह है कि सीमा पर भारतीय सैनिकों को ज्यादा नुकसान पहुंचाना और पाकिस्तानी रिहायशी इलाकों को बर्बाद होने से बचाना है।
कितनी तरह के होते हैं एटमी हथियार
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट जेएस सोढ़ी के अनुसार, परमाणु हथियार दो तरह के होते हैं। टैक्टिकल और स्ट्रैटेजिक। टैक्टिकल एटमी हथियार 50 किलोटन तक होते हैं। वहीं स्ट्रैटेजिक परमाणु हथियार 100 किलोटन से ज्यादा होता है। टैक्टिकल परमाणु हथियार किसी खास मकसद के लिए बनाए जाते हैं। ये परमाणु बम छोटे होते हैं। इनका हमला खास मकसद के लिए होता है। ये छोटे इलाके में दुश्मन पर हमला करने में सक्षम होते हैं। वहीं, स्ट्रैटेजिक एटमी हथियार बड़े इलाके पर नुकसान पहुंचाते हैं। जैसे-नागासाकी, हिरोशिमा पर गिराए गए एटमी हथियार स्ट्रैटेजिक थे, जिन्होंने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई।
क्या परमाणु हथियारों की ताकत का आकलन किया जा सकता है?
डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल के अनुसार, किसी के परमाणु हथियार को कम या ज्यादा ताकतवर बताना सही नहीं है। ये विनाशक हथियार होते हैं। ये जरूर है कि भारत के पास जो एटमी हथियार हैं, अगर उनसे जंग लड़ी जाए और पाकिस्तान पर गिराया जाए तो 10 मिनट में पाकिस्तान दुनिया के नक्शे से मिट सकता है। वहीं, पाकिस्तान अगर भारत पर एटमी हथियार गिराता है तो भारत के कुछ हिस्सों का ही नुकसान होगा।
भूमिगत परमाणु परीक्षण करना।
ज्यादातर परमाणु परीक्षण अभी तक अंडरग्राउंड ही किए जाते रहे हैं। धरती के वातावरण में एटमी टेस्ट करने से धरती पर इंसानों की आबादी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचेगा। वहीं, पानी में ये टेस्ट करने से मछलियों समेत जलीय जीवन बर्बाद हो सकता है। वहीं अंडरग्राउंड एटमी टेस्ट से सबसे कम नुकसान पहुंचता है। 1963 में लिमिटेड टेस्ट बैन ट्रीटी के अनुसार, अब अंडरवाटर और एटमॉस्फेरिक एटमी टेस्ट पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। अब दुनिया भर में अंडरग्राउंड एटमी टेस्ट ही होते हैं।
सॉल्वो टेस्ट से भी होते हैं परमाणु परीक्षण
सोवियत यूनियन के जमाने में अमेरिका के साथ एक समझौता हुआ था। इसका मकसद था शांतिपूर्ण मकसद के लिए कई विस्फोटों को एकसाथ अंजाम देना। ये विस्फोट 5 सेकेंड से ज्यादा समय के लिए नहीं होंगे। एक से दो परमाणु बमों को एकसाथ एक ही तार से कनेक्ट किया जाता है। इनके बीच की दूरी 40 किलोमीटर से ज्यादा की नहीं रखी जाती है। ये बम विस्फोट के साथ ही तुरंत पास ही बने गड्ढों में दफन हो जाते हैं।
कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन क्यों लाई गई
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट ले. कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, 2009 की कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन के अनुसार, शांतिकाल में अगर कोई हमला होता है तो उसके लिए तेजी से कम समय में यानी 48 घंटे के अंदर हमला करने की रणनीति बनाई गई है। इसका मकसद यह भी है कि जंग होने की स्थिति में पाकिस्तान को परमाणु हमला करने के लिए मौका नहीं देना भी है। अभी तक यह होता था कि अगर दुश्मन कोई हमला करता था तो देश के अलग-अलग हिस्सों से सैनिक टुकड़ियों को मूव कराने में काफी समय लग जाता था।
करगिल जंग में सैन्य टुकड़ियों के देरी से पहुंचने से हुआ था नुकसानजेएस सोढ़ी के अनुसार, करगिल युद्ध में यही हुआ था। इससे तब तक इतनी देर हो जाती थी कि सेना को काफी नुकसान हो जाता था, क्योंकि मौके पर सैनिक टुकड़ियां देरी से पहुंच पाती थीं। अब 2009 के कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन के अनुसार, यह तय किया गया कि बॉर्डर के पास छावनियों में जो भी सैन्य टुकड़ी होती है, उन्हें ही मौके पर मूव करा दिया जाता है। इन्हें मौके पर पहुंचने में 72 घंटे से भी कम समय लगता है। जंग जीतने के लिए ये टाइम काफी अहम होता है।