खून की एक बूंद से मिनटों में चल जाएगा कैंसर का पता

वैज्ञानिकों ने AI की मदद से तैयार किया टेस्ट !

नई दिल्ली: कैंसर दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक है. हर साल एक करोड़ से ज्यादा लोग कैंसर के चलते मारे जाते हैं. अगर सही समय पर कैंसर का पता चल जाए तो बीमारी को खत्म किया जा सकता है. यही वजह है कि कैंसर स्क्रीनिंग पर लगातार रिसर्च चलती रहती है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के आने से रिसर्चर्स को थोड़ी आसानी हो गई है. उन्होंने AI का इस्तेमाल करते हुए ऐसा टेस्ट ईजाद किया है जो मिनटों में कैंसर का पता लगा सकता है.

खून की एक बूंद से तीन तरह के घातक कैंसर का पता लगा सकता
सूखे खून की एक बूंद से तीन प्रमुख कैंसर का पता चल सकता है. शुरुआती प्रयोगों में, कुछ ही मिनटों के भीतर नतीजे सामने आ गए. वैज्ञानिकों ने पैंक्रियाटिक, गैस्ट्रिक और कोलोरेक्टल कैंसर की पहचान की. रिसर्चर्स के मुताबिक, खून में मौजूद खास केमिकल्स की पहचान करके, इस टेस्ट ने बता दिया कि मरीज को कैंसर है या नहीं. वैज्ञानिकों ने तीन तरह के कैंसर मरीजों और नॉन-कैंसर वाले लोगों पर टेस्ट किया था.

कैंसर का यह ब्लड टेस्ट चीन के वैज्ञानिकों ने डेवलप किया है. उनके मुताबिक, नए टेस्ट से बीमारी का पता लगाने के लिए 0.05 मिलीलीटर से भी कम खून की जरूरत पड़ती है. उनकी खोज के नतीजे Nature Sustainability जर्नल में 22 अप्रैल को छपे हैं.

कैंसर का नया टेस्ट कैसे काम करता है?
कैंसर का यह नया टेस्ट मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करता है. खून के सैंपल्स में मेटाबॉलिज्म के बाई-प्रोडक्ट्स जिन्हें मेटाबोलाइट्स कहते हैं, का एनालिसिस किया जाता है. ये मेटाबोलाइट्स खून के तरल हिस्से – सीरम में पाए जाते हैं. टेस्ट इन्हें ‘बायोमार्कर’ की तरह यूज करता है और शरीर में कैंसर की संभावित मौजूदगी जाहिर करता है. खून में मौजूद बायोमार्कर्स की स्क्रीनिंग से शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता लगाया जा सकता है. शुरुआती स्टेज में बचने की संभावना ज्यादा होती है.

दुनिया के तीन सबसे घातक कैंसरों में अग्नाशय, कोलोरेक्टल और गैस्ट्रिक कैंसर शामिल हैं. फिर भी इन तीनों की पहचान करने वाला कोई स्टैंडअलोन टेस्ट उपलब्ध नहीं है. डॉक्टर्स अभी इमेजिंग या सर्जिकल प्रोसीजर के जरिए कैंसर वाले टिशू का पता लगाते हैं.

लिक्विड खून से बेहतर है ड्राई सीरम का टेस्ट
तरल खून की तुलना में सूखे सीरम को कलेक्ट, स्टोर और ट्रांसपोर्ट करना न सिर्फ आसान है, बल्कि कम खर्चीला भी है. वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि लिक्विड ब्लड टेस्ट के मुकाबले सूखे खून की टेस्टिंग ने बेहतर नतीजे दिए. एक प्रयोग में, सूखे खून के धब्बों का यूज करने से उन्हें अग्नाशय कैंसर के 81.2% मामलों का पता लगाने में मदद मिली. जबकि तरल खून के नमूनों का यूज करने पर 76.8% मामले सामने आए.

हालांकि, बाजार में कैंसर का यह नया टेस्ट उपलब्ध होने में अभी खासा वक्त लगेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि कैंसर स्क्रीनिंग में बड़े पैमाने पर इस टेस्ट के इस्तेमाल से काफी फर्क पड़ सकता है. एक अनुमान में चीनी वैज्ञानिकों ने कहा कि कैंसर के अज्ञात मामलों में 20% से 50% की गिरावट देखने को मिल सकती है.

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