रोहिंग्या रिफ्यूजियों को देश में रुकने नहीं दे सकते: केंद्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट में दलीलः रोहिंग्या को नागरिकता देना आर्टिकल 19 के खिलाफ

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अवैध तरीके से भारत में दाखिल हुए रोहिंग्या रिफ्यूजियों को अगर यहां रुकने दिया गया तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। विकासशील देश होने के साथ भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाली देश भी है। ऐसे में हमें अपने नागरिकों को प्राथमिकता देने की जरूरत है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अपील की गई थी कि केंद्र को निर्देश दें फॉरेनर्स एक्ट का उल्लंघन करने के आरोप में डिटेन्शन सेंटर में रखे गए रोहिंग्या लोगों को रिहा कर दिया जाए। केंद्र ने इसी याचिका के जवाब में यह एफिडेविट बुधवार को फाइल किया था।

रोहिंग्या रिफ्यूजियों में ज्यादातर मुस्लिम हैं, जो म्यांमार की सांप्रदायिक हिंसा से भागकर अवैध तरीके से भारत, बांग्लादेश और अन्य देशों में दाखिल हुए हैं। रोहिंग्या रिफ्यूजियों में ज्यादातर मुस्लिम हैं, जो म्यांमार की सांप्रदायिक हिंसा से भागकर अवैध तरीके से भारत, बांग्लादेश और अन्य देशों में दाखिल हुए हैं।

ब्।। लागू होने के बाद रोहिंग्या को लेकर छिड़ी बहस
देश में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) लागू होने के बाद से रोहिंग्या रिफ्यूजियों को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। इस कानून के तहत 2015 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। कानून के तहत रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता नहीं मिलेगी।

अपने एफिडेविट में केंद्र सरकार ने कहा कि भारत ने 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन और 1967 के स्टेटस ऑफ रिफ्यूजी से जुड़े प्रोटोकॉल पर साइन नहीं किए थे। इसलिए ये तय करना कि किसी श्रेणी के व्यक्ति शरणार्थी माने जाएंगे या नहीं, ये पूरी तरह से केंद्र का अधिकार होगा।

केंद्र बोला- रोहिंग्या को नागरिकता देना आर्टिकल 19 के खिलाफ
केंद्र ने यह भी कहा कि अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को भारत में रहने का अधिकार मुहैया कराने के लिए दाखिल की जा रही अर्जियां अभिव्यक्ति की आजादी देने वाले संविधान के आर्टिकल 19 के खिलाफ हैं। ये साफ है कि आर्टिकल 19 सिर्फ भारतीय नागरिकों पर लागू हो सकता है, विदेशी नागरिकों पर नहीं।
केंद्र ने कहा कि किसी समुदाय को कानूनी दायरे के बाहर जाकर रिफ्यूजी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है और ज्यूडिशियल ऑर्डर पास करके ऐसा कोई डिक्लेरेशन नहीं किया जा सकता है। हम एक विकासशील देश हैं जिसकी आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है और संसाधन सीमित हैं। ऐसे में हमारी प्राथमिकता हमारे अपने नागरिक होने चाहिए। इसलिए हम सभी विदेशियों को रिफ्यूजियों के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। खासतौर पर जब ऐसे फॉरेनर्स में से अधिकतर अवैध रूप से देश में दाखिल हुए हैं।

केंद्र का तर्क- रोहिंगया देश की सुरक्षा के लिए खतरा
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के 2005 के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने अवैध प्रवास के खतरों पर ध्यान देने को कहा था। ये पहले भी बताया जा चुका है कि देश में रोहिंग्याओं का अवैध प्रवास और देश में उनका लगातार रहना न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी पैदा करता है।

केंद्र के एफिडेविट में ये भी कहा गया है कि नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से भारत की सीमा खुली हुई है, जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ भारत का समुद्री रास्ता खुला हुआ है। इसकी वजह से अवैध प्रवास का खतरा लगातार बना रहता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) पर चल रही पॉलिटिक्स पर बात रखी। शाह ने (CAA) का विरोध कर रही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर कहा कि उन्हें शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच अंतर नहीं पता।
न्यूज एजेंसी (CAA) को दिए इंटरव्यू में गृह मंत्री ने कहा, ‘मैं ममता बनर्जी से अपील करता हूं कि राजनीति करने के लिए कई और मुद्दे भी हैं। कृपया बांग्लादेश से आने वाले बंगाली हिंदुओं का विरोध न करें। आप भी एक बंगाली हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 12 मार्च को फिर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के नियमों को और स्पष्ट करने की कोशिश की। कहा, ‘18 करोड़ भारतीय मुसलमानों को किसी भी स्थिति में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से डरने की जरूरत नहीं है। इससे उनकी नागरिकता और समुदाय पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वे भारत में रहने वाले हिंदुओं की तरह ही अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं’।

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