धूम्रपान और तंबाकू कर रहा है टीनएजर्स को बीमार

दिल्ली के कुछ हिस्सों में 6.7% चिंता और 22.4% डिप्रेशन के शिकार: एम्स

नई दिल्ली: शहरों की दौड़ती-भागती जिंदगी के बीच एम्स की एक स्टडी रिपोर्ट बेहद डराने वाली है। दिल्ली के शहरी इलाके में रहने वाले 491 किशोरों में से कम से कम 34% किसी न किसी तरह की मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं। इसमें से 22.4% डिप्रेशन से और 6.7% टेंशन से ग्रस्त हैं। दिल्ली एम्स के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन और मनोरोग विभाग की ओर से किए गए एक अध्ययन में यह डराने वाली बात सामने आई है।

दक्षिण-पूर्व दिल्ली में स्थित अंबेडकर नगर की एक शहरी कॉलोनी, दक्षिणपुरी एक्सटेंशन में किए गए इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन लोगों में मानसिक परेशानी देखी गई, वे या तो धूम्रपान कर रहे थे या किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे थे। कम से कम 26 प्रतिभागियों (5.3 प्रतिशत) ने धूम्रपान करने वाले तंबाकू (सिगरेट, बीड़ी या हुक्का के रूप में) का इस्तेमाल किया था और 25 प्रतिभागियों (5.1 प्रतिशत) ने गुटखा, खैनी या पान मसाला जैसे तंबाकू का सेवन किया था। इनमें से ज्यादातर लोग (48 प्रतिशत) रोजाना तंबाकू का सेवन करते थे।

धूम्रपान और तंबाकू कर रहा है टीनएजर्स को बीमार, Psychological Disorders से ग्रसित हो रहे हैं दिल्ली के बच्चे
एम्स के मुताबिक दिल्ली के कुछ हिस्सों में 491 टीनएजर्स में से करीब 34% टीनएजर्स साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम से पीड़ित हैं. इनमें से 6.7% चिंता और 22.4% डिप्रेशन के शिकार हैं.

एम्स के सेंटर फॉर नेबरहुड मेडिकेशन और साइकेट्रिस्ट डिपार्टमेंट के द्वारा की गई रिसर्च के मुताबिक दिल्ली के कुछ हिस्सों में 491 टीनएजर्स में से करीब 34% टीनएजर्स साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम से पीड़ित हैं. इनमें से 6.7% चिंता और 22.4% डिप्रेशन के शिकार हैं.

दिल्ली की रिपोर्ट आई सामने
साउथ ईस्ट दिल्ली के कुछ हिस्सों की गई स्टडी के मुताबिक धूम्रपान या तंबाकू जैसी नशीली चीजों का सेवन करने वाले लोग कॉमन साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम ग्रस्त हैं. रिपोर्ट की मानें तो 5.3% लोग धूम्रपान या तम्बाकू (सिगरेट, बीड़ी या हुक्का) और 5.1% गुटखा, खैनी या पान मसाला जैसे स्मोकलेस तम्बाकू का सेवन करते हैं. वहीं, 48% लोग स्मोकलेस टोबैको का इस्तेमाल करते हैं. दिल्ली में रहने वाले 15-19 साल के बच्चों में डिप्रेशन, तनाव या चिंता जैसी समस्याएं बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में टीनएजर्स को साइकोलॉजिकल समस्याओं से निजात पाने के लिए मेंटल हेल्थ सर्विस की जरूरत का हवाला दिया गया.

मुख्य इन्वेस्टिगेटर आफताब अहमद का कहना है कि कॉमन साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम की समस्या साल 2015-16 में 13 वर्ष की उम्र 7.3% थी, जो कि 17 साल की उम्र में 34% हो गई. यह नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट की तुलना में ज्यादा है. हालांकि, सर्वे में स्क्रीनिंग के बाद मिनी-किड (मान्य डायग्नोस्टिक टूल) के जरीए टीनएजर्स में होने वाले इस डिसऑर्डर पता लगाकर इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है.

दिल्ली नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे के मुताबिक लगभग 84.9% लोगों का बाहर का खाना खाने से इस समस्या के होने की संभावना काफी हद तक बढ़ सकती है. बताया जा रहा है कि तनाव के कारण पिछले 6 महीनों में लगभग 49.1% एकेडमिक पार्टिसिपेंट्स, 13.4% पढ़ाई से परेशान और 5.5% बोर्ड परीक्षा का हवाला देते हुए इसके बारे में सूचना दी गई थी. वहीं कुछ की मानें तो 8.4% लोग बीमारी से और 8.4% लोग परिवार से हुए मनमुटाव के कारण इस समस्या का शिकार होते हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
रिसर्च के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर आफताब अहमद ने कहा कि अध्ययन में बताई गई मानसिक परेशानियों (34 प्रतिशत) का प्रसार राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 में बताए गए प्रसार (13-17 साल के बच्चों में 7.3 प्रतिशत) से कहीं ज्यादा है।उन्होंने कहा, ‘हालांकि, उस सर्वेक्षण में शुरुआती जांच के बाद केवल कुछ किशोरों का ही मिनी-किड से मूल्यांकन किया गया था।

इससे वास्तविक मानसिक परेशानियों की संख्या कम आंकी जा सकती है। यह अध्ययन मानसिक परेशानियों के बोझ का अनुमान लगाने के लिए एक मान्य डायग्नोस्टिक टूल (मिनी-किड) का उपयोग करता है। इसलिए, इस अध्ययन में ज्यादा सटीक अनुमान मिलने की संभावना बेहतर है। साथ ही, दिल्ली राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण का हिस्सा नहीं था।’ नई रिसर्च में पाया गया है कि ज्यादातर प्रतिभागी (84.9%) अक्सर बाहर का खाना खाते थे।

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