जस्टिस यशवंत वर्मा के कैश कांड में एक और खुलासा

सुप्रीम कोर्ट पैनल समिति ने पाया कि जली नकदी वाला स्टोर रूम जस्टिस वर्मा के कंट्रोल में था

नई दिल्ली : दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित एक विशेष समिति की जांच ने हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा को कथित रूप से ‘कैश कांड’ में दोषी ठहराया है. इस मामले में जलकर राख हुए नकदी के बंडलों की बरामदगी ने पूरे न्यायिक तंत्र को झकझोर कर रख दिया है. समिति ने अपनी जांच में पाया कि जिस स्टोररूम में ये जली हुई नकदी मिली, वह जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के ही पूरे कंट्रोल में था. यह घटना राजधानी के सबसे पॉश इलाके, लुटियन्स दिल्ली, में उनके आधिकारिक आवास पर 14 मार्च की रात करीब 11:35 बजे घटी.

सूत्रों के मुताबिक, तीन सदस्यीय समिति ने अपनी जांच में इलेक्ट्रॉनिक सबूतों सहित कई सबूक जुटाए हैं और 50 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए हैं, जिनमें दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा और दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख भी शामिल हैं. रिपोर्ट 3 मई को अंतिम रूप दी गई, और समिति की राय में आरोप इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए.

इस मामले में जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को खारिज किया है. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट की प्रति तथा जस्टिस वर्मा का जवाब भेजा है. सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने आरटीआई एक्ट के तहत रिपोर्ट और उस पर हुई आधिकारिक बातचीत की जानकारी देने से मना कर दिया है.

समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागु, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं. समिति की रिपोर्ट के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया, जहां फिलहाल उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है.

3 मई को रिपोर्ट जमा होने के बाद 6 मई को जस्टिस वर्मा ने अपना जवाब भेजा. इसके बाद 8 मई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बयान आया कि इन-हाउस प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को समिति की रिपोर्ट भेज दी गई है.

अब यह देखना अहम होगा कि क्या संसद में इस मामले को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा या जस्टिस वर्मा इस्तीफा देते हैं. जो भी हो, यह मामला भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक नई बहस को जन्म जरूर देगा.

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