हाईकोर्ट में दी दलील, कहा- शाही ईदगाह के पक्षकार सिर्फ अवैध कब्जाधारी हैं

शाही ईदगाह के पक्षकार- न तो मालिक हैं न किरायेदार, वह सिर्फ अवैध कब्जाधारी हैं

प्रयागराजः मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में मंगलवार को हिंदू पक्ष ने दलील देते हुए कहा कि शाही ईदगाह वक्फ की संपत्ति नहीं है। उपासना स्थल अधिनियिम 1991, वक्फ अधिनियम और आदेश-सात नियम 11 इस वाद में लागू नहीं होते।
हाईकोर्ट में मंगलवार को न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ के सामने वाद की पोषणीय पर मुस्लिम पक्ष के सवालों के जवाब में हिंदू पक्ष की ओर से ईदगाह पर बने हिंदू प्रतीकों के छायाचित्र पेश किए गए।

शूट नंबर नौ की तरफ से अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने पक्ष रखते हुए कहा कि शाही ईदगाह वक्फ संपत्ति नहीं है। गलत तरीके से इसे वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है। वक्फ एक्ट के तहत वक्फ संपत्ति घोषित करने के दौरान प्रभावित को नोटिस दिया जाना जरूरी है। इसका अनुपालन न होने पर यदि प्रभावित सिविल कोर्ट जाता है, तो कोर्ट को ट्रायल का अधिकार है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में लिमिटेशन एक्ट भी लागू नहीं होगा।

1968 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच किए गए समझौते को अवैध बताया। इस समझौते के तहत दो एकड़ भूमि शाही ईदगाह को दी गई थी। अधिवक्ता रीना एन सिंह ने शूट नंबर सात की तरफ से पक्ष रखा। शूट नौ, 11 और 18 में बहस हुई। श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के अधिवक्ता हरेराम त्रिपाठी, अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह व वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से तसनीम अहमदी और हरिशंकर जैन मौजूद रहे।

श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर कब्जे का कोई दस्तावेज नहीं
शूट नंबर 13 के वादी अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने दलील देते हुए कहा कि शाही ईदगाह पक्ष के लोग श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर किस आधार पर कब्जा किए हैं, इसका कोई भी दस्तावेज उनके पास नहीं है। उन्होंने सर यदुनाथ सरकार की किताब मासीर-ए-आलमगिरी, एंपरर औरंगजेब एंड डिस्ट्रक्शन आफ टेंपल और मथुरा डिस्ट्रिक्ट मेमोर पेश करते हुए कहा कि इनमें मंदिर व गुरुकुलों को तोड़े जाने का जिक्र है। उन्होंने न्यायालय से वक्फ एक्ट की समीक्षा किए जाने का अनुरोध किया।

शाही ईदगाह के पक्षकार सिर्फ अवैध कब्जाधारी: हिंदू पक्ष के वकील
हिंदू पक्ष के वकील महेंद्र प्रताप ने कहा कि यह विवाद पोषणीय है। शाही ईदगाह पक्ष के लोग सिर्फ अवरोध पैदा कर रहे हैं। शाही ईदगाह के पक्षकारों से पूछा जाए कि किस आधार पर वह कब्जा कर बैठे हुए हैं। शाही ईदगाह के पक्षकार न तो मालिक हैं न किरायेदार। वह सिर्फ अवैध कब्जाधारी हैं।

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